Wednesday 10 October 2018

मृत्युभोज व हरिद्वार : व्यक्तिगत अनुभव

Suman Krishnia

मृत्युभोज व हरिद्वार : व्यक्तिगत अनुभव

----------------------
पीहर में पिताजी ने मृत्युभोज 1982-83 (34 साल पहले) मे जब दादाजी गुजरे तब बंद कर दिया था, उस वक्त पिताजी की उम्र थी 48 वर्ष के करीब, यह उनका स्वयं का निर्णय था जो शायद उन्होंने मन में बहुत पहले ही ले रखा था, दादाजी के देहावसान पर क्रियांवित किया। परिवार के सदस्य भी सहमत। उसके बाद धीरे धीरे बाकि लोग भी बंद करते गए।
ससुराल में दादा ससुर ने 1971 ( 47 साल पहले ) में अपनी मां के देहावसान के समय मृत्युभोज बंद करने का निर्णय लिया, उस वक्त दादा ससुर की उम्र 70 वर्ष के करीब थी, परिवार ने सहमति दी - उसके बाद धीरे धीरे आस पडो़स, गांव के लोगों ने भी बंद कर दिया। यह दादा ससुर का व्यक्तिगत निर्णय था, जिसमें परिवार नें सहयोग दिया।
इन दोनों ही स्थितियों में घर के बड़ो ने अपने घर से शुरूआत की व समाज के सामने एक उदाहरण पेश किया- बाकि लोग भी देर सवेर उसी राह पर चल पडे।

इसको बंद करने की प्रेरणा आर्य समाज द्वारा चलाया अभियान था,जिससे सामूहिक चेतना आई व परिवारों ने मृत्युभोज से छुटकारा पा लिया।
----------------------------------------------------------
हरिद्वार जाने की पंरम्परा जारी रही।
पिताजी ने हम भाई बहनों को बुलाकर कह दिया कि मेरी मौत के बाद, मेरे अंग दान कर देना ताकि किसी जरूरतमंद के काम आयें, आप लोग हरिद्वार भी मत जाना।
अब हमारे गांव ने साल भर पहले सामूहिक निर्णय लिया है कि आगे से हरिद्वार नहीं जायेंगे, उसकी बजाय स्मृति में पेड़ लगायेंगे।
------------------------------------------------------------------
हरिद्वार की हकीकत : हमने वहां के पंडो की बही देखने व बात करने पर मालूम चला की यह प्रथा 100-140 साल से ज्यादा की नहीं है। चूंकि कहा तो यह जाता है यह व्यवस्था सनातन काल से चली आ रही है परंतु ज्यादा जानकारी जुटाने का प्रयास किया तो कुछ तथ्य सामनें आये
- 1840 के आसपास में यह इलाका अकालग्रस्त था तथा अंग्रेजो ने नहरी व्यवस्था की शूरूवात की, जो कि 1855 के दौरान सिंचाई के लिए उपयोग में आनी शूरू हुई।
- आज का टेहरी, उस वक्त पोर्ट था जहां से जहाज माल लादकर गंगा नदी से कलकत्ता तक चलते थे, मतलब महत्वपूर्ण स्थान था।
-आज जहां अस्थि विसर्जन किया जाता है वह गंगा नदी से निकली हुई नहर वितरिका है ना कि गंगा नदी।
- 1865 के बाद यहां रेल्वे लाईन बिछाने का काम शुरू हुआ ताकि टेहरी पोर्ट तक सामान ढुलाई का कार्य आसान हो जाये, शुरू में रेल्वे घाटे का सौदा साबित हुआ, तो यात्रा को बढावा देने की योजना बनाई गई, और इसलिए धार्मिक कर्मकांडो का सहारा लेकर हरिद्वार को मुख्य स्थान बनाया गया व मोक्ष की कथा कहानियां आमजन तक पहंचाने का काम किया ( आज के परिप्रेक्ष में , जैसे कंम्पनी के सैल्समैन का एक ही उद्देश्य ही रहता है कि उत्पाद को बेचा जाऐ उसके गुणगान करके- हर कंम्पनी अपने उत्पाद की अच्छी पैकेजिंग व मार्केटिंग करती है ,ग्राहक को आकर्षित करने के लिए ).
- हरिद्वार के रिकार्ड ज्यादा से ज्यादा 140 साल से पुराना मिलने की गुंजाईश बहुत कम है।
- हरिद्वार के पंडो की बहियों की माइक्रो फिल्म (micro film) , एक अमेरिकन संस्थान ( institute of ohio) ने डीजीटल रिकार्डिंग की है, इसकी एक कापी National Archive of India, Delhi में रखी गई है।
----------------------------------------------------------------
आज हम दोहरी समस्याओं से सामना कर रहे है, जहां एक तरफ लोग मृत्युभोज की व हरिद्वार की जद्दोजहज में उलझे हुए हैं तो जिन्होंने मृत्युभोज छोड़ दिया उन्होंने नई समस्या पकड़ली-शादी ब्याह में ज्यादा खर्चा व दहेज प्रथा।

No comments:

Post a Comment