Thursday 15 November 2018

बाबा, ज्योतिष क्या होती है?

बाबा, ज्योतिष क्या होती है?
त्रिभुवन
दीपावली पर एक प्रसिद्ध टीवी चैनल पर एक प्रसिद्ध एंकर के मुंह से वैदिक ज्योतिष शब्द सुनकर बेटे ने कहा, पापा- ज्योतिष तो सुना था, लेकिन ये वैदिक ज्योतिष क्या है?
बेटे के इस प्रश्न ने विश्रांति के पथ पर जा चुकी मेरी स्मृतियों को अशांत कर दिया। कभी बचपन में मैंने भी अपने पिता से ऐसा ही प्रश्न किया था। मैं प्रश्न बहुत करता था और पिता उत्तर देते थकते न थे। वे न कभी स्कूल गए थे और न किसी के पास बैठकर पढ़े थे। सब कुछ स्वाध्याय से ही सीखा था।
हम उस दिन शायद सुलेमान की हैड स्थित अपने गांव चक 25 एमएल से मांझूवास जा रहे थे और घोड़े पर थे। घर से निकले ही थे कि गांव की कांकड़ पर एक सज्जन मिले, जो हमारे नज़दीकी रिश्तेदार थे और ज्योतिषी के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने 'जय राम जी की' किया तो बाबा बोले : ठग महाशय की जय हो! कुटिल मुस्कान के साथ वे हँसे और पिता से कहने लगे कि इस काया के सबसे ऊपर दिमाग़ है, लेकिन चलने के लिए बनी दो टांगों से थोड़ा ऊपर एक पेट भी होता है! बाबा बोले : रोटी खाओ घी-शक्कर से, दुनिया ठगो मक्कर से! हे परमात्मा, तू कब निकालेगा इस देश को दकियानूसों के चक्कर से!!! हे प्रभु, तू इस धरती को इस ज्योतिष से कब मुक्त करोगे???
बाबा ने दुलदुल (हमारा घोड़ा) को सुलेमानकी की ओर से मोड़ा ही था कि मैंने प्रश्न दाग़ दिया : बाबा, ज्योतिष क्या होती है? पीली खिली सरसों के सुवासित खेतों में से छोटी चाल चल रहे घोड़े की लगाम को जरा हिलाया तो वह दुलकी में आ गया। बाबा बोले : देखो, ज्योतिष को वेदों का चक्षु माना गया है। चक्षु यानी आंख। और वे आंख के पर्यायवाची भी साथ-साथ मुझे याद करवाने लगे। इस बीच घोड़ा दुलकी से कदम चाल में आ गया। बाबा एक श्लोक पढ़ने लगे : शब्दशास्त्रं मुखं ज्यौतिषं चक्षुषी..देखो, शब्दशास्त्र वेद का मुख है। वेद यानी चार प्रमुख धर्मग्रंथ और वेद यानी ज्ञान भी। ज्योतिष नेत्र और निरुक्त कर्ण। श्रोत्र। कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और पांव छंद। देखो, जैसे दुलदुल के पांव कैसे लयबद्ध छंद की तरह उठ रहे हैं। यह भास्कर आचार्य का श्लोक है। इसे कंठस्थ कर लो। बोलो, शब्दशास्त्रं..। मैंने कहा, ज्योतिषं। तो वे बोले : वेदचक्षु: किलेदं स्मृतं...।
और दुलदुल बड़ी चाल से मध्यम गति में आ चुका था। सरसों के खेत मानो सोने के फूलों की चादर बिछी होने का एहसास करवा रहे थे। पिता बोले : देखो, पूरी दुनिया इतिहास पढ़ती थी और हमारे देश के मनीषी लोग भविष्यत् को बांचते थे। इतिहास हमारे के लिए निकृष्ट था। हमारे यहां व्यक्तिपूजा नहीं थी। ईश्वर सर्वव्यापक था। उसकी मूर्ति नहीं थी। हमारे यहां इतिहास इसलिए नहीं था, क्योंकि इतिहास व्यक्ति पूजा और व्यक्ति निंदा से जुड़ा होता है। विजेता इतिहास लिखता है। वह पराजित के सच को झूठ लिखता है। विजेता स्वयं को राम और पराजित को रावण साबित करता है। पराजित कुंठित होता है और वह विजेता के गेय गुणों को भी सहज स्वीकार्य नहीं कर पाता। तो हमारे यहां ज्योतिष पर काम हुआ। लेकिन ज्योतिष क्या है? यह कोई नहीं जानता। ज्योतिष मुहूर्त देखना, हस्तरेखाएं पढ़ना, राशियां देखकर भविष्यत् बताना नहीं है। ज्योतिष ज्योतिष है। यह टोना टोटका नहीं है। आप्त पुरुषों ने जिसे ज्योतिष बताया है, उसमें हस्तरेखा, जन्मपत्रिका, शरीरलक्षण, तिल, लग्न, प्रश्न, शकुन, विचार, ग्रह, नक्षत्र, राशियां और स्वप्न फल कतई नहीं हैं। इष्ट और अनिष्ट को जान लेने के दावे करना ज्योतिष नहीं है।
घोड़ा सजल घन की तरह गतिमान था और पिता कहते जा रहे थे : ज्योतिश्शास्त्रफलं पुराणगणकैरादेश इत्युच्यते। ज्योतिष यानी भविष्य में क्या-क्या होगा? राजनीति कैसी होगी? चीज़ें कैसी होंगी? जीवन कैसा होगा? वनस्पतियां कैसा रूप धारण करेंगी? हमने जो अतीत में किया, जो आज कर रहे हैं और इन दोनों के हिसाब से हमारा भविष्य कैसा होगा, इसे सही-सही जानना ज्योतिष है। इसे बहुत सधे ढंग से ज्ञान पर आधारित करके और नैसर्गिक विवेक से जानना वैदिक है। सिर्फ़ ऐसा नहीं कि किसी पुस्तक में लिख दिया और वही अंतिम या अनंतिम! लेकिन अब ज्योतिष शब्द आते ही ऐसा लगता है कि हस्तरेखा, अंगलक्षण, तिल, जन्मपत्रिका, मुहूर्त, वार, तिथि, घटी, पल, ग्रह, नक्षत्र, राशि, शकुन, प्रश्न, स्वप्न आदि के माध्यम से भविष्यत फल को जानना। वे बोले : ओह! हंत!! क्वास्ता: क्व पतिता:?! कहां फेंकना चाहते थे और कहां गिरा? क्या करना चाहते थे और क्या हुआ? कहां जाना चाहते थे और कहां पहुचे?
बाबा विज्ञान के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे। लेकिन उनका कहना था कि ज्योतिष का मतलब सृष्टि शास्त्र है। तारों, सितारों और उल्कापिंडों के बारे में वह सब जानना, जो मुनष्य की शक्तियों से परे है। वे बता रहे थे कि ज्योतिष काल गणना भी है और गणित के ज्ञान का आधार भी। कई बार ज्याेतिष से गणित सिद्ध होता है और कई बार गणित से ज्योतिष। हमारी प्राचीन शिक्षा में सूर्य सिद्धांत, चंद्रसिद्धांत जैसे कई ग्रंथ थे। समुद्र विज्ञान का अध्ययन होता था। वे बोले : यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा। तद्वेदावेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थतिम्। जैसे मयूरों के यानी मोरों के सिर पर शिखा और सर्प के सिर पर मणि होती है, उसी प्रकार वेदांग शास्त्रों में गणित शास्त्र सबसे ऊपर है। यह शिखा है। अब बताइए, कहां हस्तरेखा और कहां गणित का सच्चा विज्ञान। आचार्य भास्कर ने लिखा है : ते गोलाश्रयिणोअ्ंतरेण गणितं गोलोअ्पि न ज्ञायते। तस्माद्यो गणितं न वेत्ति स कथं गोलादिकं ज्ञास्यति। यानी स्पष्ट ग्रहों का ज्ञान गोल या गोले को जानने पर ही हो सकता है। उसके बिना नहीं। गणित के बिना गोल भी समझ में नहीं आता। इसलिए जो गणित को नहीं जानता, उसे गोलों का ज्ञान कैसे हो सकता है? वह ग्रहों को या नक्षत्रों को कैसे जान सकता है?
घाेड़ा अब सरपट दौड़ रहा था और पिता कह रहे थे कि देख हम घोड़े की पीठ पर सजी चांदी मंढ़ी जिस पिलानी या जीन पर बैठे हैं, वह झंग (पाकिस्तान का एक कस्बा, जहां अश्व सजावट का बेहतरीन सामान मिलता था) में बनी है। वे बता रहे थे कि झंग और मेेरे पैतृक गांव पंचकोसी की दूरी महज 125 से 130 मील थी और मैं यह पिलानी मेरे दोस्त हरदान सहू के साथ जाकर लाया था। बाबा ने एक दिलचस्प किस्सा सुनाया कि इधर हमारे यहां तो पंचांग देखकर लोग सब करते और ख़राब होते रहते, लेकिन उधर झंग में हमारे दोस्त अल्लारक्खा और इक़बाल खान बस अल्लाह को याद करके काम शुरू कर लेते। वे देश-विदेश हो आए और फर्श से अर्श पर पहुंच गए और हमारे यहां ज्योतिषियों ने समुद्र यात्रा काे अधर्म घोषित कर दिया और हम अर्श से फर्श पर पहुंच गए। उन्होंने एक दोहा याद करवाया : सूर नंह पूछै टीपणो, सुकन नंह देखै सूर। मरणां नूं मंगळ गिणै, समर चढै मुख नूर। ये हमारे यहां का लोकविवेक था। लोकनीति थी। लेकिन ज्योतिषियों ने तबाह कर दिया।
वे बोले : झंग चनाब के किनारे बसा शहर है। वहां हीर-रांझा की कब्र है। रास्ते में साहीवाला आता है। हम झंग गए तो घोड़ों पर ही फाज़िल्का, वज़ीरपुर, ओकाड़ा, समुदंरी होते हुए और लौटे तो पीरपंजाल, साहीवाल और पाकपट्‌टन होकर। लेकिन तुम सोचो कि अगर भारत में फलित ज्योतिष के चक्कर में न पड़े होते तो इन इलाकों पर विदेशी आक्रमणकारी कभी भी अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाते।
ऐसा नहीं कि ज्योतिष के जाल में हमीं थे। मुसलमान भी नजूमियों के चक्कर में रहे। वे जब तक इस जाल से बाहर थे, ताकतवर थे, लेकिन जब से इस जाल में आए, हम से बदतर हो गए। एक कथा है कि मुहम्मद साहब ने चांद के टुकड़े कर दिए थे। यह ऐसा ही है जैसे हनुमान ने सूर्य को निगल लिया।
ज्योतिषी जाल फैलाने वाले लाल बुझक्कड़ों ने विज्ञान और खगोल विद्या को भुुलाकर तरह-तरह की बातें फैलाईं। एक तो कहा कि अगस्त्य मुनि ने सात समुद्रों को एक साथ पी लिया था। अरे भाई अगस्त्य एक तरह का बड़ा सूर्य है। दरअसल अगस्त्य एक नक्षत्र है। बाबा ने रात को लौटते हुए अगस्त्य की स्थिति बताई। मृगशिरा आैर व्याध की स्थितियों को बताते हुए अगस्त्य को दिखाया। वे बोले, देखो, सूर्य के मृगशिरा नक्षत्र में आते ही अगस्त्य तिरोहित हो जाता है। दरअसल वर्षा काल का जब समाप्त होता है तो अगस्त्य नक्षत्र या सितारा दिखने लगता है। यानी इस समय वर्षाकाल समाप्त हो जाता है। इससे लोक की आलंकारिक भाषा में यह कहावत बनी कि अगस्त्य ने सातों समुद्रों (वर्षा) का पान कर लिया है।
ज्योतिष का सच्चा अर्थ नहीं जानने के कारण ही भ्रांतियां फैलीं। हैरानी तो तब होती है जब सुशिक्षित लोग और विज्ञान पढ़े हुए लोग इस तरह के जाल के चक्कर में पड़ते हैं। बाबा समझाने लगे, ज्योतिष का विज्ञान स्वरूप तो विद्या है, लेकिन ज्योतिष का फलित स्वरूप अविद्या है।
बाबा बोले, भविष्य को जानने के एक अदभुत शास्त्र ज्योतिष को मूढ़ लोगाें ने जो बना दिया है, और उस पर जिस तरह हमारे सुशिक्षित लोग विश्वास और आस्था रख रहे हैं, उसे देखते हुए मुझे खतरा है कि ऐसे लोगों के हाथ कभी शासन सत्ता लग गई तो हमारे यहां वैज्ञानिकों और विवेकवानाें का वही हाल होगा, जो कभी ब्रूनो और गेलीलियो का हुआ था। मूढ़ता और अविद्या मनुष्य को एेसी मनोस्थिति में ला देता है कि अगर उनकी अविद्या और मूर्खतापूर्ण बातें सिद्ध न हों तो वे धर्मग्रंथों और विज्ञान ग्रंथों का अर्थ तक बदलने लगते हैं।
बाबा ने बहुत समझाया, लेकिन मैंने कहा, लेकिन ज्योतिष है क्या, मुझे तो समझ नहीं आया। यह सच है या झूठ?
वे बोले : हम्मममम ज्योतिष। देखो 'द्युत दीप्तौ' धातु से द्युतेरिसिन्नादेश्च ज: इस औणादिक सूत्र से इसिन् प्रत्यय तथा द को ज का आदेश होकर ज्योतिष शब्द निष्पन्न होता है। ज्योतींष्यधिकृत्य कृतो ग्रंथ: शास्त्रं वा ज्यौतिषं शास्त्रम्। दीप्ति या दीप्तिमान पदार्थ ज्योति: कहलाता है। ब्रह्मांड या विश्व में समस्त पिंड ज्योतियां हैं और जो ज्योतियों के विषय में शास्त्र या विज्ञान है, वह ज्योतिष कहलाता है। भूगोल, खगोल, भूगर्भ, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे जितने भी विषय हैं, वे सबके सब ज्योतिष शास्त्र के प्रखंड हैं। यानी जातक, मुहूर्त, राशि, ग्रह, नक्षत्र, वास्तु, जप, कुंडली, संहिता, होरा जप, पूजा, आदि जो फल विधान हैं, वे सबके सब झूठे हैं और जो विज्ञान सिद्ध स्वरूप सिद्ध विज्ञान है, वह ज्योतिष है। वराहमिहिर, भास्कर आचार्य और आर्यभट्‌ट पुराने वैज्ञानिक हैं, लेकिन गौरीजातक, कालजातक, पाराशरी, भृगुसंहिता, वृहत्संहिता, मुहूर्तचिंतामणि जैसे ग्रंथों के रचयिता विज्ञान विरोधी थे।
रात बहुत हो गई थी। लौटते हुए हम एक दूसरे रास्ते से आए। गंगनहर में जलधारा का कलरव ऊंचा होता जा रहा था और घनी रात में घोड़े के पसीने की तीव्र गंध बदन को पुलकित कर रही थी। गांव के पास आकर नहर से उतरते हुए दुलदुल अचानक हिनहिनाया और वातावरण में एक गंभीर गर्जना उमड़ उठी।
ऐसा लगा, वह दिन ज्योतिष को जानने नहीं, पर्वतों के शिखर का चुंबन लेकर लौटने का था। इस आधुनिक कालखंड में लगता है कि हमारा विवेकवान अतीत आज हमारे संकीर्ण और अवैज्ञानिक वर्तमान की तुलना में कितना प्रदीप्त था। à¤¸à¤‚बंधित इमेज

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