Sunday 24 November 2019

दीनबन्धु सर छोटूराम जी :-एक महान शख्सियत

श्री सोहनलाल शास्त्री , विधावाचस्पति , बी.ए., रिसर्च आफिसर ,राजभाषा (विधायी) आयोग , विधि मंत्रालय (भारत सरकार )

स्वर्गीय चौधरी छोटूराम जी मेरी दृष्टि मे कर्मवीर योद्धा के साथ साथ महापुरुष भी थे ।महापुरुष के लक्षण हैं जिस मे दीन, दुःखी , दरिद्र और अन्याय पीड़ित जनसमुदाय के लिए पूर्ण सहानुभूति हो ।वीर तो डाकू भी हो सकता हैं और कर्मवीर उसे कहा जाता हैं जिसका जीवन केवल कथनी पर निर्भर न हो , करनी पर आधारित हो।एक कर्मवीर योद्धा यदि अपने परिश्रम से कोई सिद्धि या निधि प्राप्त कर ले किन्तु उस फल का उपभोग स्वयं ही करे या केवल अपने बंधुओ तथा सगे सम्बन्धियो को उसके उपभोग का पात्र ठहराए तो वह महापुरुष नहीं कहला सकता ।

Wednesday 20 November 2019

विभिन्न महत्वपूर्ण सूत्र, मानक ,चिह्न

*बहुत मेहनत के बाद यह चिन्ह तैयार किया हैं अतः आप से निवेदन हैं कि आप इसे हर students से सहभागिता करें...*✍🏻✍🏻✍🏻 
यह पोस्ट सोशल मीडिया से साभार है।            
1)  +   =  जोड़

2)  --  =  घटाव

3)  ×  =  गुणा

4)  ÷   =  भाग

5)  %  =  प्रतिशत

Wednesday 30 October 2019

बचपन बाल मजदूरी से नौकरी तक

#बचपन_बाल_मजदूरी_से_नौकरी_तक_________सफर"__

 बात उन दिनों की है जब मैंने आठवीं की परीक्षा दे दी थी और गर्मियों की छुट्टियां थी मैं पहली बार कमठा मजदूरी पर गया था क्योंकि हालात ही कुछ ऐसे थे की मजदूरी करना मजबूरी था, मैं  मजदूरी करने जहां गया था वह एरिया जालौर जिले के सरवाना के आस पास नेहड़ में पड़ता है दूर-दूर तक कोई  गांव नहीं   था हम नहर का काम कर रहे थे नहर के पास डिग्गी बनाना डिग्गियों का प्लास्टर करना उनके पास बने होद की साफ-सफाई और उनमें पड़े बड़े पत्थरों को बाहर निकालना यह एक मेरे जैसे दुबले-पतले बच्चों के लिए आसान नहीं था लेकिन मजबूरी में करना पड़ता था वहां बाजार नजदीक नहीं था खाने के लिए सब्जी भी नहीं मिलती थी खाते तो बाजरे की रोटी और मिर्च और दाल।

 एक दिन शाम का टाइम था अंधेरा हो चुका था और एक बड़ी सी कटोरी में लाल मिर्च भिगो कर रखी थी पत्थरों  पर लकड़ियां जलाकर रोटियां पकानी पड़ती थी ,अंधेरा था तो कटोरी दिखी नहीं और मैं कुछ लेकर वापस बाहर निकल रहा था तो मेरा पैर कटोरी से टकराया और कटोरी खाली हो गई थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि मिर्च कहां है तो पता चला की कटोरी तो खाली है तो उन्होंने कहा कि कटोरी खाली कैसे हुई? इसको किसने ठोकर मारी? लेकिन मैंने भी कुछ कहा नहीं क्योंकि आपको पता ही है अगर सच बोलता तो भी डांट पड़ती है लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं शायद वो समझ गए कि जानबूझकर किसी ने ठोकर नहीं मारी है।

रूम के पास बने बड़े-बड़े होद मे से हम बड़े-बड़े पत्थर बाहर निकालते  थे और ऐसे काम करते-करते मेरे हाथ और कंधे पर बड़े-बड़े घाव हो गए थे , यह तो शुक्र है कि उस टाइम कोई स्मार्टफोन नहीं था वरना वह क्लिक देखकर हम रोते लेकिन  उसे तो कैसे भूल सकते हैं यह तो एक शुरुआत है उसके बाद भी अलग-अलग जगह हर साल छुट्टियों में मजदूरी करने जाता रहा...

 अगले साल नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं धानेरा कमठा मजदूरी करने गया सीमेंट की 14×09 इंच की ईंटे  उठा कर दीवार चुननी थी कारीगर  दीवार पर या पालक के सहारे खड़ा होता था और उसको यह ईंटे पकड़ानी होती थी ईंटे काफी  वजन दार थी मेरे लिए शुरुआत में यह काम बड़ा मुश्किल था और सुबह नाश्ते में छाछ और आधी रोटी मिलती थी।

 दसवीं बोर्ड के एग्जाम के बाद में विद्युत पोल खड़ा करने का उ
काम हेतु राजकोट गया था मुझे ले जाते वक्त  ठेकेदार ने कहा कि मुझसे हलका काम करवाएंगे लेकिन आप सब जानते हैं कथनी और करनी में कितना अंतर होता है वहां जाकर गुजरात की कठोर मिट्टी और पथरीली मिट्टी में खम्भा  खड़ा करने के लिए 5 फुट गहरा गड्ढा खोदना पढ़ता था यह काम बड़ा कठिन था  क्योंकि इसमें भुजाओं में दम और अनुभव होना जरूरी था और इनमें से मेरे पास कुछ भी नहीं था क्योंकि मैं दुबला पतला था और अनुभव तो था नहीं वह पथरीली जमीन में दिन भर में मैं एक कट्ठा खोद पाता था तभी हमारे साथ वाले मजदूर हमसे जल्दी गड्ढा खोद  देते थे वह जाकर पानी पीते और हम पर दबाव डालते कि तुम गड्ढा जल्दी खोदो वरना तुमको छाया में बैठने भी नहीं देंगे।

यह तो संघर्ष की मोटा माटी बातें हैं जिन हालातों से गुजरा हूँ उनको मैं गहराई से लिखना नहीं चाहता क्योंकि उनको लिखना और दोबारा जीना बड़ा कष्टदायी है ।

कॉलेज के दिन जिस फेक्ट्री में गुजारे उसका भी हाल कभी बयां करूँगा।

#नोट :- जिए पलों को लिखना उन्हें पुनः जीना है इसलिए यह पढ़कर आप भी अपने बचपन मे ,अतीत में डूब जाएंगे,यह लिखते हुए मेरी आँखों में आँसू आने लगे इसलिए इसको विराम देता हूँ।

कॉलेज लाइफ

#कॉलेज_लाइफ_की_जंग_शराबियों_के_संग●●●●●●●

2014 में 12वीं पास करने के बाद पहले प्रयास में मेरा एसटीसी में चयन हो गया था मुझे श्री लाल बहादुर शास्त्री एसटीसी कॉलेज जोधपुर अलॉट हुआ था मैं पहली बार किसी बड़े शहर में गया था क्योंकि इससे पहले मैं कभी बाड़मेर भी नहीं  रहा मैंने रहने के लिए कमरा किराया लेने की बजाए हालात को ध्यान में रखते हुए एक फैक्ट्री का सहारा लिया।
 मैं शुरुआत में जिस फैक्ट्री में रहा वह टेक्सटाइल की फैक्ट्री थी कपड़ों की धुलाई और रंगाई का काम था वहां काम करने वाले लोग मांसाहारी थे और वह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था मैं तो दुकान पर लिखे  झटका मीट जैसे नाम देखकर भी कंप कंपा उठता था, यह पहली बार था जब मैं घर से दूर  रह रहा था वहाँ  मेरा जी नहीं लग रहा था फिर मेरी बात मेरे ही गांव के मोडाराम जी सारण से हुई उन्होंने कहा कि बालसमंद में एक टाइलों की फैक्ट्री है वहां ओगाला बाड़मेर के कुछ आदमी काम करते हैं , मैं पहले मदेरणा कॉलोनी में रहता था और बाद में यह दूसरी फैक्ट्री देखने बालसमंद गया था मैं फैक्ट्री देखने गया तो वहां कोई नहीं था फैक्ट्री के गेट पर सांकल यानी जंजीर से  ताला लगाया गया था क्योंकि गेट बेढंगा था  और दोनों फाटक आपस में इतने दूर हो सकते थे कि मैं उसके अंदर घुस के मैंने देखा और यह पहले वाली फैक्ट्री से ठीक थी तो मैंने यहां रहना शुरू कर दिया इस फैक्ट्री के मालिक श्री जगदीश सिंह जी पंवार जोधपुर का काफी जाना पहचाना नाम है ,उनके सुपुत्र मनीष जी फैक्ट्री  का संचालन देखते थे मैं वहां रहने लगा जो टाइल बनाने काम करते थे डेढ़ महीने बाद वापस आए फिर उनसे मुलाकात हुई और मेरा अकेलापन दूर हो गया  टाइलें  बनाने का काम करने वाले सभी लोग मेरा साथ देते थे उन्हें मेरे फैक्ट्री में रहने से कोई एतराज नहीं था वह तो यह कहते थे तुम फैक्ट्री में रहते हो हम देर सबेर कभी भी आते हैं बिस्तर बर्तन  सही स्थान पर मिलते हैं लेकिन जो फैक्ट्री में ड्राइवर लोग थे सेठ जी के तीन चार गाड़ियां और एक JCB भी थी उनके ड्राइवरों को मेरा रहना रास नहीं आया।

 मैं कॉलेज साइकिल पर जाता था बाकी के टाइम में मैं फैक्ट्री में ही रहता था फैक्ट्री लगभग ज्यादातर टाइलों से भरी रहती थी और हर जगह तराई के कारण पानी फैला होता था ,मच्छर बहुत होते थे।

ड्राइवर चाहते थे कि मैं फैक्ट्री में नहीं रहूँ ताकि वे  बिंदास होकर शराब पी सके और भी अपने सपने सजा सके फैक्ट्री मालिक नशे के सख्त खिलाफ खिलाफ थे अगर उनको किसी दिन  पता चलता कि आज किसी ड्राइवर ने शराब पी तो वे  उनको खूब  डांटते थे ।

उस फैक्ट्री में सिर्फ तीन कमरे थे एक कमरा सीमेंट से भरा हुआ होता था दूसरे कमरे में टाइलें बनाने वाले रहते थे और तीसरे कमरे में कबाड़ भरा हुआ था उस कमरे में दो पलंग मुश्किल से आते थे मैं उसी कमरे में खाना बनाता ,सोता था पढ़ाई भी उसी में करता था मैं जिस कमरे में सोता था उसमें एक अधेड़ ड्राइवर भी सोता था  वह शराब पीकर जल्दी खाना खा लेते थे 9:00 बजे तक सो जाते थे सोते वक्त यह कहकर लाइट बंद करवा देते थे कि उन्हें नींद नहीं आती और मुझे यह मजबूरी लाइट बंद करनी पड़ती  क्योंकि वहाँ  उनकी हैसियत बड़ी थी मुझसे और मुझे अपनी पढ़ाई छोड़ कर 9:00 बजे सोना पड़ता लगभग 10:00 बजे ड्राइवर फिर उठता और लाइट चालू करके पेशाब करने बाहर जाता था फिर वह लाइट रात भर चालू लेकिन उसके बाद मैं भी रात को उठ नहीं पाता मैं सुबह उठता है और अपनी पढ़ाई करता है खाना बना कर तैयार होकर कॉलेज जाता ऐसे ही दिन कटते थे कई बार ड्राइवर बाहर  साइड पर होते थे तो मुझे कॉल करके कहते कि तुम ठेके से हमारे लिए दारु लाकर रखो क्योंकि हम आएंगे तब तक ठेका बंद हो जाएगा लेकिन मैं साफ इंकार कर देता वह मुझसे इससे और ज्यादा  खफा होने लगे हां एक बात है कि जब कभी भी मुझसे पास के होटल से खाना मंगवाते तो मैं  जरूर लाकर रखता था लेकिन शराब कभी नहीं लाया ।

#मोबाइल_और_पैसों_की_चोरी________

 एक दिन मुझे बुखार आ गया था और मैं सीमेंट वाले रूम में सो गया था ताकि मुझे कोई डिस्टर्ब ना करें उस रात तीन ड्राइवर आए थे मैं हमेशा जिस रूम में सोता था उस रूम में पैसा और कुछ जरूरी सामान रखने के लिए 15 KG घी के डिब्बे से लॉक लगाकर संदूक बनाई थी मैं उसमें अपना सामान पैसे रखता था उसका कुंठा लोहे के तार का बना होता उस  रात भी ड्राइवरों ने शराब पी रखी थी लोहे के सरिया से उस डिब्बे का कुण्टा निकाल लिया  उसी डिब्बे में सैमसंग का एक मोबाइल था जो मैंने अपने कॉलेज के सहपाठी  से 3000 में खरीदा था उसमें कुछ मिस्टेक थी इसलिए मैंने उनको ठीक नहीं कराया और कोई दूसरा पुराना मोबाइल मेरे पास था मैं उसका उपयोग कर रहा  था मैंने सैमसंग का मोबाइल उस डिब्बे में रख दिया था डिब्बे में ₹1000 का नोट भी था दोनों उस  रात को गायब हो गए।

 मैंने तीनों ड्राइवर से पूछा लेकिन किसी ने कबूल नहीं किया मैंने फैक्ट्री मालिक को भी बताया लेकिन उन्होंने भी ड्राइबरों को कहा तो था कि अगर लिए हैं तो उसके वापस कर दो लेकिन कुछ नहीं हुआ  इस घटना से मैं बहुत दुखी हुआ और मैं घर आना चाहता था लेकिन उस वक्त टाइल बनाने वाले भी  गांव आए हुए थे मेरे पास किराए के पैसे नहीं थे क्योंकि जो पैसे थे वह चुरा लिए गए थे।मैंने फैक्ट्री मालिक से पैसे उधार लिए उन्होंने मुझे सिर्फ ₹400 दिए और मैं गांव आ गया  लेकिन मैंने घर पर नहीं बताया कि ऐसी घटना हुई है क्योंकि घर वाले बहुत ज्यादा दुखी होते......

मैं साइकिल से कॉलेज आता जाता था  कॉलेज शास्त्री नगर में था और फैक्ट्री बालसमंद मंडोर के पास प्रतिदिन 15 किलोमीटर का सफर था मैं फैक्ट्री छोड़ नहीं सकता था क्योंकि मैं अगर रूम लेकर रहता तो  कोई साथी नहीं था क्योंकि सभी मेरे सहपाठी पहले से ही अपने हिसाब से रह रहे थे और मैं अकेला रूम लेता तो उसका किराया मेरे लिए  भारी पड़ता ।

मैं फैक्टरी में काम भी करता था ,छुट्टी के दिन टाइलें  भरकर सप्लाई की जाती थी तो मैं गाड़ी में टाइलें  भरने का काम करता था उसमें कुछ राशि मिल  जाती थी एक बार कॉलेज के मेरे साथियों ने मेरी आर्थिक मदद करनी चाही  लेकिन मैंने मना कर दिया ।

 मुझे मजबूरी में  2 साल इसी फैक्ट्री में गुजारने पड़े मैं घर से गेहूं लेकर जाता था ताकि मेरा बजट ज्यादा बढे नहीं, आने जाने के लिए भी मैं अपने  रिश्ते में चाचा श्री धनाराम जी के साथ गाड़ी में आता जाता था उनके पास माल वाहक गाड़ी थी जो नागौर से राजकोट के मध्य चलती है एक बार मैं घर आ रहा था और मेरी धनाराम जी से बात हुई उन्होंने कहा की हम शाम को 10:00 बजे तक पाल बाईपास आ जाएंगे क्योंकि  नागौर से पाल बाईपास होते हुए आते  थे मैं सिटी बस से 7:00 बजे पाल बाईपास के पास स्थित पेट्रोल पंप पर पहुंच गया  मैं गाड़ी का इंतजार कर रहा  था 10 बजे के आसपास उन्होंने कॉल किया गाड़ी पंक्चर हो गई है इसलिए आने में वक्त लगेगा आप वहीं पेट्रोल पंप पर  सो जाओ, मैं पेट्रोल पंप पर सो गया लेकिन मच्छर इतने थे रात भर नींद नहीं आई सुबह 4:00 बजे गाड़ी और फिर मैं उनके साथ घर आया इस तरह साथ आना जाना होता था जब मेरी STC पूरी हो गई तो मैंने फैक्ट्री मालिक मनीष जी को कहा साहब मैं गांव जाऊंगा मेरा कॉलेज खत्म  हो गया उन्होंने कहा कि अब हमारी फैक्ट्री की निगरानी कौन करेगा मैंने कहा मुझे तो जाना पड़ेगा (क्योंकि आज मैं एक तरह से आजाद हो गया था घुटन भरे माहौल से)आप अपने हिसाब से निगरानी कीजिए ।।

काम करने वाले रूपा राम जी गोदारा, सत्ता राम जी बेनीवाल , पूनमारामजी ,अचलाराम जी सभी ने कहा कि आपने कोई शिकायत का मौका नहीं वरना सेठ जी हमें  बोलते हैं ।

मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी मैं गांव आ गया था उसके बाद मैंने ईमित्र का काम किया  उसके बाद रीट की तैयारी हेतु  बाड़मेर चला गया, 8 महीने  के बाद रीट का एग्जाम हो गया और परीक्षा का रिजल्ट आया उसके बाद  कट ऑफ आई और मैं शिक्षक बन गया ,मेरा परिवार ,पूरा गांव बहुत खुश हुआ।
उसके बाद  मैंने घरवालों को मोबाइल खोने की घटना की सच्चाई बताई पहले मैंने मोबाइल  बेच देने का झूठ बोला ।

 मेरे कॉलेज जीवन के कई सहपाठी मेरे संघर्ष के गवाह है मैं  साथियों को  टैग कर रहा हूँ ।

जो आप साइकिल का चित्र देख रहे हैं 11वीं में एडमिशन के बाद खरीदी थी 2 साल स्कूल में प्रतिदिन 22 किलोमीटर का सफर तय कर विद्यालय जाता था और उसके बाद कॉलेज के सफर में भी मैं अपने चाचा की गाड़ी में डालकर साइकिल जोधपुर ले गया था इसी को चलाकर  मैंने अपनी एसटीसी पूरी की।
मेरे कॉलेज के सहपाठी
Tr Om Prakash Choudhary

Prakash Choudhary

Mohit Bana Choudhary
Hanu Godara
Suru Bishnoi
Choudhary Parv
Manak Singh Bhati
Manoj Balach
Ashok Charan
ManRaj Meena
Vasu Meena आदि....