Friday 3 July 2020

औरत का चरित्र

औरत का कोई चरित्र नहीं होता
उसका चरित्र तो गढ़ा जाता है
आँका जाता है
उसकी पोशाक से..
उसके देखने के अंदाज़ से..
उसकी मुस्कराहट से
किसी से हंस कर बात करने से..
दुपट्टा सरक जाने से
स्कर्ट में दिखती टांगो से
साड़ी से दिखती नाभि से..
बालो की उलझी बिखरी लटों से
बेसबब मुस्कुराहट से....
ये ही तो कराते हैं पहचान चरित्र की--उफ्फ
चरित्र गड़ा जाता है
होंठो की गहरी लाली में
आँखों के काजल में
गर्दन के लिपटे काले मोतियों में
हाथों के कंगन में
पायल की झुनझुन में..
हैं न ??
किसी को दिख पाते हैं
भीतरी मन के कोने में
छुपे हुए चरित्र के रंग ..??
कोमल स्वभाव.. चाहत भरा ठहराव. ...
अटूट स्नेह, अथाह सहिष्णुता,
निःस्वार्थ समर्पण ।

ना ना पर .. ये सब तो बेकार की बाते हैं
औरत का तो चरित्र ही नहीं होता ।
उसका चरित्र तो प्रकृति द्वारा अतःकरण से गढ़ा जाता है ।.... बस..... उसे देखने के लिए हमारे पास आंखें होनी चाहिए..... लेकिन अफसोस यह की होती नहीं.... ❤️😍
ओशो ❤️

भला क्या है??

आचरण में अति न भली, रति न भला अभिमान।
काम क्रोध कभी न भला, कड़वी  भली न जबान।।

निर्बल की हाय  भली न, संत का भला न शाप।
पर नारी प्रीत न भली, मन का भला न पाप।।

दुर्बल से रार भली न, ब्राह्मण भली न लात।
जीव  सताया कभी भला न, कीनी भली न घात।।

बादळ तो ब़ूठा भला, बहता भला' नीर।
तुरंग (घोड़ा) तो ताकड़ा भला, धीमा भला समीर।।

भाण उगता 'तेज' भला, मंदा भला अवसाण।
उतरादी बिरखा भली, दक्खिण भला उफाण।

जड़ां तो पाताळ भली, शिरा भली आकाश।
रहणो तो भाईयो मे भलो, होवो भलेही खट्टास ।।

वैरी का विनाश भला, मीत  भला उपकार।
दुर्जन (दुष्ट) की दूरी भली, साध भला सत्कार।।

निज पाणि पतवार भली, आत्म भला विश्वास।
डूबत को तिनका भला, अन्त भली अरदास।।

मन की तो माळा भली, तन का भला तपाव।
कहे 'उगम' ऊँचो तो आचरण भलो, निर्मल भलो सभाव।।
🙏🙏🙏🙏jakhar,,,,