Thursday 15 November 2018

बाबा, ज्योतिष क्या होती है?

बाबा, ज्योतिष क्या होती है?
त्रिभुवन
दीपावली पर एक प्रसिद्ध टीवी चैनल पर एक प्रसिद्ध एंकर के मुंह से वैदिक ज्योतिष शब्द सुनकर बेटे ने कहा, पापा- ज्योतिष तो सुना था, लेकिन ये वैदिक ज्योतिष क्या है?
बेटे के इस प्रश्न ने विश्रांति के पथ पर जा चुकी मेरी स्मृतियों को अशांत कर दिया। कभी बचपन में मैंने भी अपने पिता से ऐसा ही प्रश्न किया था। मैं प्रश्न बहुत करता था और पिता उत्तर देते थकते न थे। वे न कभी स्कूल गए थे और न किसी के पास बैठकर पढ़े थे। सब कुछ स्वाध्याय से ही सीखा था।
हम उस दिन शायद सुलेमान की हैड स्थित अपने गांव चक 25 एमएल से मांझूवास जा रहे थे और घोड़े पर थे। घर से निकले ही थे कि गांव की कांकड़ पर एक सज्जन मिले, जो हमारे नज़दीकी रिश्तेदार थे और ज्योतिषी के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने 'जय राम जी की' किया तो बाबा बोले : ठग महाशय की जय हो! कुटिल मुस्कान के साथ वे हँसे और पिता से कहने लगे कि इस काया के सबसे ऊपर दिमाग़ है, लेकिन चलने के लिए बनी दो टांगों से थोड़ा ऊपर एक पेट भी होता है! बाबा बोले : रोटी खाओ घी-शक्कर से, दुनिया ठगो मक्कर से! हे परमात्मा, तू कब निकालेगा इस देश को दकियानूसों के चक्कर से!!! हे प्रभु, तू इस धरती को इस ज्योतिष से कब मुक्त करोगे???
बाबा ने दुलदुल (हमारा घोड़ा) को सुलेमानकी की ओर से मोड़ा ही था कि मैंने प्रश्न दाग़ दिया : बाबा, ज्योतिष क्या होती है? पीली खिली सरसों के सुवासित खेतों में से छोटी चाल चल रहे घोड़े की लगाम को जरा हिलाया तो वह दुलकी में आ गया। बाबा बोले : देखो, ज्योतिष को वेदों का चक्षु माना गया है। चक्षु यानी आंख। और वे आंख के पर्यायवाची भी साथ-साथ मुझे याद करवाने लगे। इस बीच घोड़ा दुलकी से कदम चाल में आ गया। बाबा एक श्लोक पढ़ने लगे : शब्दशास्त्रं मुखं ज्यौतिषं चक्षुषी..देखो, शब्दशास्त्र वेद का मुख है। वेद यानी चार प्रमुख धर्मग्रंथ और वेद यानी ज्ञान भी। ज्योतिष नेत्र और निरुक्त कर्ण। श्रोत्र। कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और पांव छंद। देखो, जैसे दुलदुल के पांव कैसे लयबद्ध छंद की तरह उठ रहे हैं। यह भास्कर आचार्य का श्लोक है। इसे कंठस्थ कर लो। बोलो, शब्दशास्त्रं..। मैंने कहा, ज्योतिषं। तो वे बोले : वेदचक्षु: किलेदं स्मृतं...।
और दुलदुल बड़ी चाल से मध्यम गति में आ चुका था। सरसों के खेत मानो सोने के फूलों की चादर बिछी होने का एहसास करवा रहे थे। पिता बोले : देखो, पूरी दुनिया इतिहास पढ़ती थी और हमारे देश के मनीषी लोग भविष्यत् को बांचते थे। इतिहास हमारे के लिए निकृष्ट था। हमारे यहां व्यक्तिपूजा नहीं थी। ईश्वर सर्वव्यापक था। उसकी मूर्ति नहीं थी। हमारे यहां इतिहास इसलिए नहीं था, क्योंकि इतिहास व्यक्ति पूजा और व्यक्ति निंदा से जुड़ा होता है। विजेता इतिहास लिखता है। वह पराजित के सच को झूठ लिखता है। विजेता स्वयं को राम और पराजित को रावण साबित करता है। पराजित कुंठित होता है और वह विजेता के गेय गुणों को भी सहज स्वीकार्य नहीं कर पाता। तो हमारे यहां ज्योतिष पर काम हुआ। लेकिन ज्योतिष क्या है? यह कोई नहीं जानता। ज्योतिष मुहूर्त देखना, हस्तरेखाएं पढ़ना, राशियां देखकर भविष्यत् बताना नहीं है। ज्योतिष ज्योतिष है। यह टोना टोटका नहीं है। आप्त पुरुषों ने जिसे ज्योतिष बताया है, उसमें हस्तरेखा, जन्मपत्रिका, शरीरलक्षण, तिल, लग्न, प्रश्न, शकुन, विचार, ग्रह, नक्षत्र, राशियां और स्वप्न फल कतई नहीं हैं। इष्ट और अनिष्ट को जान लेने के दावे करना ज्योतिष नहीं है।
घोड़ा सजल घन की तरह गतिमान था और पिता कहते जा रहे थे : ज्योतिश्शास्त्रफलं पुराणगणकैरादेश इत्युच्यते। ज्योतिष यानी भविष्य में क्या-क्या होगा? राजनीति कैसी होगी? चीज़ें कैसी होंगी? जीवन कैसा होगा? वनस्पतियां कैसा रूप धारण करेंगी? हमने जो अतीत में किया, जो आज कर रहे हैं और इन दोनों के हिसाब से हमारा भविष्य कैसा होगा, इसे सही-सही जानना ज्योतिष है। इसे बहुत सधे ढंग से ज्ञान पर आधारित करके और नैसर्गिक विवेक से जानना वैदिक है। सिर्फ़ ऐसा नहीं कि किसी पुस्तक में लिख दिया और वही अंतिम या अनंतिम! लेकिन अब ज्योतिष शब्द आते ही ऐसा लगता है कि हस्तरेखा, अंगलक्षण, तिल, जन्मपत्रिका, मुहूर्त, वार, तिथि, घटी, पल, ग्रह, नक्षत्र, राशि, शकुन, प्रश्न, स्वप्न आदि के माध्यम से भविष्यत फल को जानना। वे बोले : ओह! हंत!! क्वास्ता: क्व पतिता:?! कहां फेंकना चाहते थे और कहां गिरा? क्या करना चाहते थे और क्या हुआ? कहां जाना चाहते थे और कहां पहुचे?
बाबा विज्ञान के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे। लेकिन उनका कहना था कि ज्योतिष का मतलब सृष्टि शास्त्र है। तारों, सितारों और उल्कापिंडों के बारे में वह सब जानना, जो मुनष्य की शक्तियों से परे है। वे बता रहे थे कि ज्योतिष काल गणना भी है और गणित के ज्ञान का आधार भी। कई बार ज्याेतिष से गणित सिद्ध होता है और कई बार गणित से ज्योतिष। हमारी प्राचीन शिक्षा में सूर्य सिद्धांत, चंद्रसिद्धांत जैसे कई ग्रंथ थे। समुद्र विज्ञान का अध्ययन होता था। वे बोले : यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा। तद्वेदावेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थतिम्। जैसे मयूरों के यानी मोरों के सिर पर शिखा और सर्प के सिर पर मणि होती है, उसी प्रकार वेदांग शास्त्रों में गणित शास्त्र सबसे ऊपर है। यह शिखा है। अब बताइए, कहां हस्तरेखा और कहां गणित का सच्चा विज्ञान। आचार्य भास्कर ने लिखा है : ते गोलाश्रयिणोअ्ंतरेण गणितं गोलोअ्पि न ज्ञायते। तस्माद्यो गणितं न वेत्ति स कथं गोलादिकं ज्ञास्यति। यानी स्पष्ट ग्रहों का ज्ञान गोल या गोले को जानने पर ही हो सकता है। उसके बिना नहीं। गणित के बिना गोल भी समझ में नहीं आता। इसलिए जो गणित को नहीं जानता, उसे गोलों का ज्ञान कैसे हो सकता है? वह ग्रहों को या नक्षत्रों को कैसे जान सकता है?
घाेड़ा अब सरपट दौड़ रहा था और पिता कह रहे थे कि देख हम घोड़े की पीठ पर सजी चांदी मंढ़ी जिस पिलानी या जीन पर बैठे हैं, वह झंग (पाकिस्तान का एक कस्बा, जहां अश्व सजावट का बेहतरीन सामान मिलता था) में बनी है। वे बता रहे थे कि झंग और मेेरे पैतृक गांव पंचकोसी की दूरी महज 125 से 130 मील थी और मैं यह पिलानी मेरे दोस्त हरदान सहू के साथ जाकर लाया था। बाबा ने एक दिलचस्प किस्सा सुनाया कि इधर हमारे यहां तो पंचांग देखकर लोग सब करते और ख़राब होते रहते, लेकिन उधर झंग में हमारे दोस्त अल्लारक्खा और इक़बाल खान बस अल्लाह को याद करके काम शुरू कर लेते। वे देश-विदेश हो आए और फर्श से अर्श पर पहुंच गए और हमारे यहां ज्योतिषियों ने समुद्र यात्रा काे अधर्म घोषित कर दिया और हम अर्श से फर्श पर पहुंच गए। उन्होंने एक दोहा याद करवाया : सूर नंह पूछै टीपणो, सुकन नंह देखै सूर। मरणां नूं मंगळ गिणै, समर चढै मुख नूर। ये हमारे यहां का लोकविवेक था। लोकनीति थी। लेकिन ज्योतिषियों ने तबाह कर दिया।
वे बोले : झंग चनाब के किनारे बसा शहर है। वहां हीर-रांझा की कब्र है। रास्ते में साहीवाला आता है। हम झंग गए तो घोड़ों पर ही फाज़िल्का, वज़ीरपुर, ओकाड़ा, समुदंरी होते हुए और लौटे तो पीरपंजाल, साहीवाल और पाकपट्‌टन होकर। लेकिन तुम सोचो कि अगर भारत में फलित ज्योतिष के चक्कर में न पड़े होते तो इन इलाकों पर विदेशी आक्रमणकारी कभी भी अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाते।
ऐसा नहीं कि ज्योतिष के जाल में हमीं थे। मुसलमान भी नजूमियों के चक्कर में रहे। वे जब तक इस जाल से बाहर थे, ताकतवर थे, लेकिन जब से इस जाल में आए, हम से बदतर हो गए। एक कथा है कि मुहम्मद साहब ने चांद के टुकड़े कर दिए थे। यह ऐसा ही है जैसे हनुमान ने सूर्य को निगल लिया।
ज्योतिषी जाल फैलाने वाले लाल बुझक्कड़ों ने विज्ञान और खगोल विद्या को भुुलाकर तरह-तरह की बातें फैलाईं। एक तो कहा कि अगस्त्य मुनि ने सात समुद्रों को एक साथ पी लिया था। अरे भाई अगस्त्य एक तरह का बड़ा सूर्य है। दरअसल अगस्त्य एक नक्षत्र है। बाबा ने रात को लौटते हुए अगस्त्य की स्थिति बताई। मृगशिरा आैर व्याध की स्थितियों को बताते हुए अगस्त्य को दिखाया। वे बोले, देखो, सूर्य के मृगशिरा नक्षत्र में आते ही अगस्त्य तिरोहित हो जाता है। दरअसल वर्षा काल का जब समाप्त होता है तो अगस्त्य नक्षत्र या सितारा दिखने लगता है। यानी इस समय वर्षाकाल समाप्त हो जाता है। इससे लोक की आलंकारिक भाषा में यह कहावत बनी कि अगस्त्य ने सातों समुद्रों (वर्षा) का पान कर लिया है।
ज्योतिष का सच्चा अर्थ नहीं जानने के कारण ही भ्रांतियां फैलीं। हैरानी तो तब होती है जब सुशिक्षित लोग और विज्ञान पढ़े हुए लोग इस तरह के जाल के चक्कर में पड़ते हैं। बाबा समझाने लगे, ज्योतिष का विज्ञान स्वरूप तो विद्या है, लेकिन ज्योतिष का फलित स्वरूप अविद्या है।
बाबा बोले, भविष्य को जानने के एक अदभुत शास्त्र ज्योतिष को मूढ़ लोगाें ने जो बना दिया है, और उस पर जिस तरह हमारे सुशिक्षित लोग विश्वास और आस्था रख रहे हैं, उसे देखते हुए मुझे खतरा है कि ऐसे लोगों के हाथ कभी शासन सत्ता लग गई तो हमारे यहां वैज्ञानिकों और विवेकवानाें का वही हाल होगा, जो कभी ब्रूनो और गेलीलियो का हुआ था। मूढ़ता और अविद्या मनुष्य को एेसी मनोस्थिति में ला देता है कि अगर उनकी अविद्या और मूर्खतापूर्ण बातें सिद्ध न हों तो वे धर्मग्रंथों और विज्ञान ग्रंथों का अर्थ तक बदलने लगते हैं।
बाबा ने बहुत समझाया, लेकिन मैंने कहा, लेकिन ज्योतिष है क्या, मुझे तो समझ नहीं आया। यह सच है या झूठ?
वे बोले : हम्मममम ज्योतिष। देखो 'द्युत दीप्तौ' धातु से द्युतेरिसिन्नादेश्च ज: इस औणादिक सूत्र से इसिन् प्रत्यय तथा द को ज का आदेश होकर ज्योतिष शब्द निष्पन्न होता है। ज्योतींष्यधिकृत्य कृतो ग्रंथ: शास्त्रं वा ज्यौतिषं शास्त्रम्। दीप्ति या दीप्तिमान पदार्थ ज्योति: कहलाता है। ब्रह्मांड या विश्व में समस्त पिंड ज्योतियां हैं और जो ज्योतियों के विषय में शास्त्र या विज्ञान है, वह ज्योतिष कहलाता है। भूगोल, खगोल, भूगर्भ, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे जितने भी विषय हैं, वे सबके सब ज्योतिष शास्त्र के प्रखंड हैं। यानी जातक, मुहूर्त, राशि, ग्रह, नक्षत्र, वास्तु, जप, कुंडली, संहिता, होरा जप, पूजा, आदि जो फल विधान हैं, वे सबके सब झूठे हैं और जो विज्ञान सिद्ध स्वरूप सिद्ध विज्ञान है, वह ज्योतिष है। वराहमिहिर, भास्कर आचार्य और आर्यभट्‌ट पुराने वैज्ञानिक हैं, लेकिन गौरीजातक, कालजातक, पाराशरी, भृगुसंहिता, वृहत्संहिता, मुहूर्तचिंतामणि जैसे ग्रंथों के रचयिता विज्ञान विरोधी थे।
रात बहुत हो गई थी। लौटते हुए हम एक दूसरे रास्ते से आए। गंगनहर में जलधारा का कलरव ऊंचा होता जा रहा था और घनी रात में घोड़े के पसीने की तीव्र गंध बदन को पुलकित कर रही थी। गांव के पास आकर नहर से उतरते हुए दुलदुल अचानक हिनहिनाया और वातावरण में एक गंभीर गर्जना उमड़ उठी।
ऐसा लगा, वह दिन ज्योतिष को जानने नहीं, पर्वतों के शिखर का चुंबन लेकर लौटने का था। इस आधुनिक कालखंड में लगता है कि हमारा विवेकवान अतीत आज हमारे संकीर्ण और अवैज्ञानिक वर्तमान की तुलना में कितना प्रदीप्त था। à¤¸à¤‚बंधित इमेज

आरएसएस का कार्यकर्ता बम बना रहा था , केरल की घटना बम फटा

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Wednesday 7 November 2018

सिद्ध करो राम थे............. या स्वीकार करो कि रामायण काल्पनिक ग्रंथ है...

सिद्ध करो राम थे............. या स्वीकार करो कि रामायण काल्पनिक ग्रंथ है...
(1). एक समय पर दो तरह के इंसान कैसे हो सकते हैं?
एक पूंछ वाला और एक बिना पूंछ वाला...
दोनों मनुष्य की तरह बोलते हैं दोनों के पिता राजा हैं क्या ऐसा संभव है??
(2). मेंढक से मंदोदरी कैसे बन सकती हैं/ पैदा हो सकती है??
(3). लंगोटी का दाग छुड़ाने से अंगद कैसे पैदा हो सकता है??
पक्षी मनुष्य की तरह कैसे काम कर सकता है जैसे गिद्धराज??
(4). किसी मनुष्य के 10 सिर हो ही नहीं सकते इतिहास या पुरातत्व द्वारा आज तक ये सिद्ध नहीं हो पाया कि किसी इंसान के 10 सिर 20 भुजाओं वाला कोई मनुष्य नहीं है.......
(5). जिस लंका की आप बात कर रहे हो,उसका नाम भी 1972 में लंका पड़ा। इसके पहले सिलोन व सीलोन से पहले सिहाली इत्यादि नाम थे तो असली लंका कहा है???

Sunday 4 November 2018

⚜️ जन्मपत्री तथा भविष्वाणियाँ ⚜️

☀️ कहते हैं कि पंजाब में एक झल्लन नाम का जाट था । उसका पुत्र रोग्रस्त हो गया । उसके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि अब डॉक्टरों को कौन बुलाता फिरेगा ! डॉक्टरों की फीस तथा ओषधियों का मूल्य मैं सहन नहीं कर सकूंगा । ये जो गंडे - तावीज़ करने वाले स्याने होते हैं , उनके पास चलो , उनसे कोई गंडा - तावीज ले आवेंगे और लड़के को आराम हो जायेगा । यह सोचकर झल्लन स्याने के मुहल्ले में गया तो क्या देखता है कि उस तावीज़ देने वाले के अपने ही घर में रोना - पीटना पड़ रहा है । झल्लन ने पूछा कि क्या बात है ? लोगों ने बताया कि स्याने का 25 वर्षीय युवक पुत्र कल ही चल बसा । यह सुनते ही झल्लन कुछ पूंछे बिना ही वहाँ से अपने घर को लौट आया ।

ज्योतिषी के घर में शोक — चार - छह मास के पश्चात् झल्लन की पुत्री का शुभ विवाह होने वाला था । झल्लन ने सोचा - चलो पांधाजी से विवाह का मुहूर्त पूछ आवें । यह सोचकर झल्लन पांधाजी के घर पहुँच गया । संयोग ऐसा हुआ कि पांधाजी के घर में भी रोना - धोना मचा हुआ था । झल्लन ने पूछा कि क्या बात है ? लोगों ने बताया कि पांधाजी की एक सोलह - वर्षीय पुत्री विधवा हो गई है । उसके विवाह को अभी केवल छ : मास ही हुए थे । यह सुनकर झल्लन वहाँ से भी वापस आ गया । उसने पंजाबी में एक दोहा बोला

⚜️वैद्या दे घर पिट्टनाँ , पांध्याँ दे घर रण्ड ।
⚜️चल झल्लन घर अपने , साहा धरो नि : संग ।

अर्थात् स्यानों के घर में भी शोकाकुल लोग रो - धो रहे हैं और मुहूर्त निकालने वालों के अपने घर में पुत्री रांड ( विधवा ) हो बैठी है । चल रे झल्लन , अपने घर चल और नि : शड्डू होकर ' साहा ' ( विवाह की तिथि ) निश्चित कर दे ।

उसने सोचा — जब पांधा को अपनी पुत्री के ही विधवा होने का पता नहीं लगा तो मेरे सम्बन्ध में वह क्या बता सकेगा ? यह बात ठीक है भाई , इन बातों का किसी को भी पता नहीं लगता । ' भोज प्रबंध ' में लिखा भी है कि , ' घोड़े का कूदना , मेघों की गर्जन, स्त्रियों के मन की बात , मनुष्य का भाग्य , वर्षा का न होना अथवा अतिवृष्टि , इन सब बातों को देवजन भी नहीं जान सकते , मनुष्य का तो सामथ्र्य ही क्या है ।

☀️सबसे बड़े ज्योतिषी का भ्रम टूटा — काशी - निवासी पं० सुधाकर द्विवेदी काशी के सबसे बड़े ज्योतिषी माने जाते थे । उन्होंने संस्कृत व ज्योतिष के सैकड़ों ग्रन्थों की टीकाएँ लिखी हैं । वह बनारस के राजकीय संस्कृत कॉलेज में ज्योतिष - विभाग के अध्यक्ष थे । उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया । उन्होंने उसकी जन्मकुण्डली बनावाई और उसके जन्म का ठीक - ठीक समय जानकर अपने मित्रों व शिष्यों को भेज दिया । सबने उस कन्या की जन्मकुण्डली बनाकर भेजी और लिखा कि कन्या का सौभाग्य अटल होगा । पण्डित सुधाकर जी को स्वयं भी गणित से ऐसा ही ज्ञात हुआ । परन्तु वह कन्या विवाह के छह मास के पश्चात् ही विधवा हो गई । इस पर पण्डितजी का फलित ज्योतिष पर विश्वास सदा - सदा के लिए डोल गया और उन्होंने काशी के टाउन हॉल में फलित ज्योतिष के खण्डन में व्याख्यान दिया तथा सब ज्योतिषियों को चुनौती दी कि आओ , फलित ज्योतिष पर शास्त्रार्थ करो ! परन्तु कोई भी ज्योतिषी उनके सामने न आया । उन्होंने श्री जनार्दन जोशी डिप्टी कलैक्टर को एक पत्र में लिखा है — ' मेरा फलित ज्योतिष में विश्वास नहीं है । मैं इसको एक प्रकार का खेल समझता हूँ । ये ज्योतिषी लोग अपने झूठे बकवास से लोगों का धन व्यर्थ में ही लूटते हैं । '

☀️ ऋषि दयानन्द के बारे में कहा था — ' श्री स्वामी दयानन्द जी महाराज के सम्बन्ध में ज्योतिषी ने उनके पिताजी को बतलाया कि इस बालक के दो विवाह होंगे परन्तु स्वामी जी तो संन्यासी बन गए और बाल ब्रह्मचारी रहे । स्वामी वेदानन्द जी ने बतलाया कि हम दो व्यक्तियों को जानते हैं जिनका जन्म एक ही ग्राम में , एक ही मुहल्ला व एक ही समय में हुआ । उनका नाम भी एक ही रखा गया , परन्तु एक रलाराम तो पाँच सहस्र रूपये मासिक पाते रहे , मन्त्री भी बने , और दूसरा रलाराम आजीवन साठ रुपये मासिक से अधिक न पा सका । अत : किसी की उन्नति व पतन का आधार जन्म का समय नहीं , प्रत्युत पूर्व - जन्म के कर्म एवं पुरुषार्थ ही हैं।

☀️ ज्योतिषी की पुत्री का अपहरण हो गया - गत दिनों समाचारपत्रों में एक घटना प्रकाशित हुई कि एक बहुत बड़े ज्योतिषी की पुत्री का एक स्कूल मास्टर ने अपहरण कर लिया है । चौदह दिन तक उस ज्योतिषी ने किसी को पता तक नहीं दिया । चौदह दिनों तक वह लोगों को यह बतलाता रहा कि लड़की मामा के घर मिलने के लिए गई है ।

चौदह दिन के पश्चात् आर्यसमाज के प्रधान को पता चला तो वह दो - चार सज्जनों के साथ लेकर ज्योतिषी के घर पर गए और वास्तविक स्थिति को जानकर कहा , “ चलो थानामें चलकर रिपोर्ट तो लिखवाएँ ।

” ज्योतिषी जी ने कहा , " अब लड़की तो मेरे काम की रही नहीं , मैं उसको घर पर तो रख नहीं सकता । '

इस पर प्रधान आर्यसमाज ने कहा , ' वह आपकी ही पुत्री नहीं , प्रत्युत हमारी भी है । हम उसको अपने पास रखेंगे । ”

अन्तत : थाना में रिपोर्ट लिखवाई गई । थाना से पुलिस को साथ लेकर मन्त्री आर्यसमाज कोयटा गया और वहाँ से बहावलपुर राज्य में जाकर लड़की को खोज निकाला । चार - पाँच सहस्र रुपये लगाकर और पाँच मास तक घोर परिश्रम करके उस लड़की का विवाह किया गया । ज्योतिषी जी को जन्मपत्री से इन सब बातों का ज्ञान न हो सका कि लडकी का अपहरण होगा । कहने का तात्पर्य यह है कि ज्योतिषियों को स्वयं अपने बारे में ही विपत्तियों का पता नहीं लग सकता , दूसरों को तो वे कक्या बतलावेंगे । इस सम्बन्ध में एक और उदाहरण है -

☀️जाट के घर पर ज्योतिषी — कहते हैं कि एक जाट खेत में गया हुआ था । उसकी धर्मपत्नी घर पर ही थी । ज्योतिषी जी घर पर उसकी स्त्री के पास आया और उसका हाथ देखकर बतलाया कि तुम्हारे ऊपर तो ढाई वर्ष के लिए कठिन समय है । यह सुनकर उस जाटनी के तो होश ही उड़ गए । इतने में ही जाट भी अपने खेत का कार्य निपटाकर घर पर आ गया । जाटनी ने जाट को देखकर कहा कि ' देखो , हमारे ऊपर तो ढाई वर्ष के लिए बहुत विपत्ति है । यह पण्डित जी ने बतलाया है ।

” जाट ने पण्डित जी से पूछा , ' यह विपत्ति किसी प्रकार से टल भी सकती है क्या ? ”

ज्योतिषी जी ने कहा , ' हाँ , गेहूँ वा घृत आदि के दान से विपदा दूर की जा सकती है '

यह सुनकर जाट ने जाटनी से कहा , ' भीतर से एक मन गेहूँपण्डित जी को लाकर दान कर दो । यह बला तो दूर करनी ही पड़ेगी । "

यह सुनकर जाटनी तो गेहूँ लेने भीतर चली गई । जाट ने भी अन्दर से घर का कुण्डा लगा दिया और एक छोटा - सा दण्डा लेकर ज्योतिषी जी की पिटाई आरम्भ कर दी और सिर से लेकर पाँव तक उसकी खूब पिटाई - कुटाई कर दी । तब ज्योतिषी जी ने करबद्ध विनती करके चौधरी से कहा , “ अब की बार मेरी जान छोड़ दो । मैं भविष्य में कभी ऐसा काम नहीं करूंगा । '

इस पर जाट ने कहा कि ' पण्डित जी , मैं आपको छोड़ तो दूंगा , परन्तु एक बात बतलाएँ कि आपको हमारी तो ढाई वर्ष की विपत्ति का पूर्व से ही ज्ञान हो गया , परन्तु आपको अपनी विपदा का ढाई मिनट पहले भी पता नहीं लगा कि अभी कुण्डी बन्द करके आपकी पिटाई होगी ! '

☀️जब बिहार म भूकम्प आया - जब बिहार म भूकम्प आया तो सैकड़ो जाने गई और लाखों रुपये की सम्पदा नष्ट हो गई । कोई भी ज्योतिषी एक मिनट पहले तक नहीं बतला सका कि भूकम्प आएगा । परन्तु जब भूकम्प आ चुका तो एक ज्योतिषी ने समाचारपत्रों में भविष्यवाणी प्रकाशित करवा दी कि 28 फरवरी की रात्रि पुन : वैसा ही भूकम्प आएगा । शरद् ऋतु थी , कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी , लोग अपने - अपने बिस्तर उठाए हुए भागे - भागे फिरे । न कुछ आया , न गया ।

☀️कोयटा में भगदड़ कैसे - अब देख लो , यह कोयटा का भूकम्प जिसमें पचास सहस्र जन समाप्त हो गए और करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई , परन्तु कोई ज्योतिषी एक मिनट पूर्व तक नहीं बतला सका कि भूकम्प आने वाला है । परन्तु जब आ चुका तो अमृतसर में एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी कि आज रात को तीन बजे वैसा ही भूकम्प आएगा । गर्मियों के दिन थे । लोग मकानों की छतों पर सोए हुए थे । एक गृहस्थी के घर में चूहों ने रसोई के पात्रों में खटखट कर दी । उसको तो पूर्व से भूकम्प का संस्कार था । भूकम्प - भूकम्प ' कहकर शोर मचा दिया । सारे मुहल्ले में भगदड़ मच गई और देखते - ही - देखते नगर भर में भागा - दौड़ी पड़ गई । न कुछ आया , न गया ।

☀️टर्की के भूकम्प के समय - अभी थोड़े दिन हुए टकी में भूकम्प आया जिसमें तीस सहस्र व्यक्ति मारे गए और करोड़ों की सम्पदा का विनाश हो गया । परन्तु यूरोप का एक भी ज्योतिषी एक मिनट पहले तक नहीं बतला सकता कि भूकम्प आवेगा । परन्तु लाहौर के ज्योतिषियों ने समाचारपत्रों में प्रकाशित करवा दिया कि कश्मीर में भूकम्प आएगा।श्रीनगर के लोग रात को शीत में मैदानों में पड़े रहे । न कुछ आया न गया ।

☀️प्रथम विश्वयुद्ध के समय — आज से पचीस वर्ष पूर्व जब कि अंग्रेजों का जर्मनी से युद्ध छिड़ा हुआ था , उस समय टर्की जर्मनी के साथ था । मैंने स्वयं उस समय मुसलमानों को यह कहते हुए अपने कानों से सुना था कि हमारी हदीसों में लिखा है कि अमुक तिथि को टकी का शासक जामा मस्जिद में आकर नमाज पढ़ेगा । और यह हमारेवाले भी भागवत का पोथा बगल में लिये फिरते थे कि बस इतना ही टोपी - राज रहना था . अब इनकी टोपी समाप्त होने वाली है । यदि शासन इन बातों को सुनकर हाथ - पाँव ढीले कर देता तो टर्की का शासक भी जामा मस्जिद में आकर नमाज पढ़ लेता और उनकी टोपी भी समाप्त हो जाती । परन्तु शासक तो जानता था कि ये सब अंधविश्वास की बातें हैं । ये बातें कभी व्यवहार में आने वाली नहीं हैं । सरकार पूर्ववत् अपने पुरुषार्थ में लगी रही । परिणाम यह निकला कि उनकी हदीसें धरी - धराई रह गई और इनका भागवत का पोथा धरा - धराया रह गया । अंग्रेजी राज्य पूर्ववत् भारत में दनदनाता रहा ।

☀️सेठों को दीवालिया कर दिया — इन ज्योतिषियों ने सैकड़ों सेठों का तो दीवाला ही निकलवा दिया । जब ये ज्योतिषी लोग बाजार में जाते तो दुकानदार लोग इनके पीछे लग जाते — ' महाराज ! गेहूँ का भाव घटेगा या चढ़ेगा ? सोना मन्दा होगा अथवा तेज़ ? ' दस को मन्दा बता देंगे और दस को कहेंगे — भाव चढ़ेंगे । कोई मरे कोई जिये , सुथरा घोल बताशे पिये । ' यदि भाव चढ़े तो दस मंहगे वालों को लूट लिया , यदि सस्ता हो गया तो दस मन्देवालों को लूट लिया । इस ठग्गी का संसार में कहीं भी अन्त नहीं है ।
कोई कुशल व्यापारी कहे तो — यदि कोई व्यापार में सुदक्ष व्यक्ति किसी वस्तु की उपज व खपत का अनुमान लगाकर कोई बात बतलावे , तो सम्भव है कि उसका कथन कुछ सीमा तक सत्य सिद्ध हो , परन्तु जिन लोगों का व्यापार से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है , उन लोगों से व्यापार के सम्बन्ध में परामर्श लेना स्वयं को डुबोने वाली बात नहीं तो क्या है ? यदि इन लोगों को मन्दे व तेजी का पता लग जाता तो ये लोग स्वयं ही सौदे करके करोड़पति क्यों न बन जाते ? परन्तु ये तो दूसरों को ही करोड़पति बनाते फिरते हैं । स्वयं तो दो - दो पैसे के लिए लोगों की दुकानों के चक्कर काटते हुए जूते घिसते रहते हैं ।

☀️लायलपुर में बाबू बर्बाद हो गए — महाशय केसरचन्द जी भजनोपदेशक आर्य प्रतिनिधि सभा ने बताया कि लायलपुर में एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि यह तोरिया जिसका तेल निकलता है , यह नौ रुपये मन हो जावेगा । उस समय तोरिया का भाव साढ़े चार रुपये मन था । बाबू लोगों ने जो सर्विस में थे , बैंकों व डाकघरों से अपनी - अपनी पूंजी निकलवाकर यथाशक्ति सहस्रों रुपये का तोरिया खरीद लिया । परन्तु तोरिया का भाव गिरकर ढाई रुपये मन हो गया । सर्विस करनेवाले अनेक बाबू इस धंधे में बर्बाद हो गए । इनमें से कुछ एक मिलकर ज्योतिषी जी के पास गए और पूछा कि आपके ज्योतिष को क्या हुआ ? वह बड़ी सरलता से बोले , ' मेरी गणना में एक बिन्दु का अंतर रह गया जो मुझे दिखाई न दिया । ” अब ज्योतिषी को तो केवल एक बिन्दु का पता न चला , परन्तु उसकी भूल से लोगों के सहस्रों डूब गए ।

☀️ज्योतिषी कैसे ठगते हैं — एक ज्योतिषी गलियों में जाता है तो ये हमारी माताएँ झट उसके आगे हाथ कर देती हैं कि देखना बाबा , मेरे क्या होगा ? अब यदि बाब कहे कि तुम्हारे कुछ नहीं होगा तो बाबे को क्या मिले ? बाबा कहता है कि ' माई जी , लड़का होगा लड़का ! ” माई बहुत प्रसन्न होती है और कुछ - न - कुछ राशि नौ मास पूर्व ही अग्रिम दे देती है । फिर वह पड़ोसन के पास जाकर कहता है कि ' होगी तो उसके यहाँ कन्या परन्तु मैंने उसका मन प्रसन्न करने के लिए पुत्र कह दिया है । ” इतना कहकर ज्योतिषी जी तो चलते बने । अब आए एक वर्ष के पश्चात् । आप जानते ही हैं कि कोई ऊँट - घोड़ा तो होने से रहा ! या लड़का होगा या लड़की होगी ! यदि लड़का हुआ तो उसके पास पहुँचे कि देखा , हमने कहा था कि पुत्र का जन्म होगा ! अब लाओ कुछ भेंट - पूजा ! यदि कन्या का जन्म हुआ तो उसके पास न जाकर पड़ोसन के पास पहुँचे कि हमने कहा था कि उसके कन्या होगी , हमने उसका मन प्रसन्न करने के लिए लड़का कह दिया था । अब लाओ कुछ भेंट - पूजा ! यदि पुत्र हुआ तो उसको लूटा , यदि लड़की हुई तो दूसरे को लूटा ! इस ठग्गी का जगत् में कोई अन्त ही नहीं ।

☀️माँ - बेटा दोनों ज्योतिषी - जिन दिनों हम स्कूलों में पढ़ा करते थे , उन दिनों हमने एक चुटकुला पढ़ा था । एक बालक ने कहा कि मैं बड़ा ज्योतिषी हूँ और मेरी माँ मेरे से भी बढ़कर ज्योतिषन है । लोगों ने पूछा कैसे ? उसने कहा जब मेघ आते हैं तो मैं कहता हूँ वर्षा होगी , और मेरी माँ कहती है कि नहीं वर्षगे । तो या तो वह होता है जो मैं कहता हूँ , या वो होता है जो मेरी माँ कहती है । इस प्रकार का ज्योतिषी तो प्रत्येक व्यक्ति बन सकता है । ये हाथ में जो रेखाएँ होती हैं , ये तो हाथों में जोड़ों के निशान हैं । जो लोग हाथों से श्रम करते हैं उनके हाथों पर ये रेखाएँ कम होती हैं , और जो लोग हाथों से थोड़ा काम करते हैं उनके हाथों में रेखाएँ अधिक होती हैं । इन हाथों में कहीं पर भी धन , सम्पदा , आयु , सन्तान , विवाह आदि लिखा हुआ नहीं होता ।

☀️ हाथ में क्या लिखा है ? — कहते हैं कि एक आर्योंपदेशक एक ग्राम में प्रचार करने के लिए गया । जब वह एक सज्जन के घर भोजन करने गया तो एक माता ने उसके आगे अपना हाथ करते हुए कहा , ' देखना पण्डित जी ! मेरे हाथ में क्या है ? ” पण्डित जी ने सहज रीति से कहा , ' माताजी ! तुम्हारे हाथ में मुझको तो हड्डियाँ , लहू व चर्म दिखाई दे रहा है । ” माता ने कहा कि ' पण्डित जी ! मैं यह बात नहीं पूछा रही । मैं तो यह पूछ रही हूँ कि मेरे इस हाथ में पुत्र कितने लिखे हैं और पुत्रियाँ कितनी लिखी हैं ? इनमें से कितनों का जीवन लिखा है और कितनों का मरण लिखा है ? — इस पर पण्डित जी ने उत्तर दिया , “ माताजी ! यह हाथ है , नगरपालिका का कार्यालय नहीं है । ”

☀️मौत का समय बताकर - ये ज्योतिषी लोग कितने ही व्यक्तियों की मृत्यु के बारे में भविष्यवाणी करके उनको झंझट में फंसा देते हैं और बहुत - से लोग तो ज्योतिषियों की बातों करके स्वयं जनता के उपहास का कारण बन जाते हैं । उदाहरण के लिए परविश्वास अभी ' दैनिक प्रताप ' लाहौर के 25 अप्रैल सन् 1940 के पृष्ठ 18 पर कालम तीन में एक रोचक समाचार छपा है ।

“ ज्योतिष में अंधविश्वास की सीमा तक आस्था ने एक व्यक्ति को किस प्रकार समय से पूर्व मृत्यु - शय्या पर लिटा दिया , इस प्रकार की घटना अभी इन दिनों शेखूपुरा में घटी है । लाला दीवानचन्द मल्होत्रा , जो रिटायर्ड सरकारी अधिकारी हैं और रावलपिण्डी के हैल्थ आफीसर डॉ० हरबंसलाल के पिता हैं , ज्योतिष में बहुत विश्वास रखते हैं । उनकी आयु इस समय लगभग साठ वर्ष है । एक ज्योतिषी ने लालाजी को बताया कि वह अमुक दिन अमुक समय स्वर्गवासी हो जाएँगे । इस पर लालाजी ने अपने सब प्रेमियों , मित्रों व सम्बन्धियों को सूचित कर दिया । दान - पुण्य जो करना था , करके , मृत्यु की बाट देखने लगे । चारपाई छोड़कर धरती पर लेट गए । आप एक सप्ताह तक मृत्यु की प्रतीक्षा में रहे । चिन्ता से भार घटकर आधा रह गया । ज्योतिषी द्वारा बताई गई मौत की घड़ी निकल गई । मौत नहीं आई , नहीं आई । लालाजी ने अपने सब मित्रों सगे - सम्बन्धियों को क्षमा - याचना व धन्यवाद के पश्चात् लौट जाने को कहा । यह घटना सारे नगर की रुचि व मनोरंजन का विषय बनी हुई है । ”

☀️वह हरिद्वार मरने गया - एक सज्जन की ज्योतिषी ने जन्मपत्री बनाई और उसमें लालाजी की आयु 47 वर्ष की लिखी थी । जब लालाजी की आयु 46 वर्ष बीत गई तो 47वें वर्ष आप अपनी आयु समाप्त करने के लिए हरिद्वार जा रहे थे तो मार्ग में पं० जनार्दन जोशीजी डिप्टी कलैक्टर अल्मोड़ा भी उसी डिब्बे में सवार हुए । लालाजी से वार्तालाप होने पर उनका प्रयोजन सुनकर पण्डित जी बहुत हँसे और उन्हें समझाने लगे कि ' परमात्मा के सिवा यह किसी को भी पता नहीं कि किसकी कितनी आयु है । फलित ज्योतिष केवल लोगों को ठगने का बहाना है । मैं भी ज्योतिष जानता हूँ और मुझे इस पर कतई विश्वास नहीं है । ” पण्डित जी की बात लाला जी की समझ में आ गई और वह हरिद्वार से स्नान करके गुरदासपुर लौट आए । अब उनकी आयु 63 वर्ष है और स्वस्थ - नीरोग जीते - जागते विच रहे हैं ।

☀️ और वह न मरे — पं० नन्दलाल जी चौधरी बटाला आर्यसमाज में रहते हैं । उनकी जन्मपत्री ज्योतिषी ने बनाई और आयु 70 वर्ष लिखी है । इस समय पण्डित जी की आयु 80 वर्ष है और वह जीते - जागते स्वस्थ दिन बिता रहे हैं । यह बात उन्होंने स्वयं मुझे बताई ।

☀️ एक महात्मा मरने बैठे तो - रावलपिण्डी में एक चरायतेवाले सिख महात्मा प्रसिद्ध हैं जो कि सब तीर्थों को चरायते का जल पिलाते हैं । गत दिनों तक ज्योतिषी ने उन्हें बतलाया कि आपका निधन आज से साठ दिन के पश्चात् हो जाएगा । महात्मा जी इस बात को सुनकर गुरुद्वारे में बैठ गए और अपनी मृत्यु का विज्ञापन देकर घोषणा कर दी । स्त्रियाँ , पुरुष व बालक सब दर्शनार्थ आने लगे । पर्याप्त भेंट - पुजापा चढ़ने लगा । सहस्रों रुपये चढ़ावा पाकर बाबाजी ने एक सौ रुपये बाजेवालों को , पचास रुपए मोटरवालों को और पचास रुपये फूलोंवालों को दिए और कहा कि मृत्यु के पश्चात् मेरी शव - यात्रा निकालकर पंजा साहेब होते हुए मुझे अटक नदी में प्रवाहित कर देना । जब पंद्रह दिन शेष रह गए तो पुलिस को भी पता लगा और उसने महात्मा जी पर पहरा लगा दिया और एक डॉक्टर भी विधिवत् आकर बैठ गया । जब नियत समय समाप्त होने में दो घण्टे शेष रह गए तो एक मोटर को फूलों से सजाकर उसमें महात्मा जी को बिठाया गया और बाजा बजने लगा । निश्चित समय पर महात्मा जी ने मरने वालों के समान धुड़धुड़ियाँ भी लीं । परन्तु जब नियत समय पर वह न मरे , तो लोगों ने महात्मा जी पर ईट - पत्थर की वर्षा आरम्भ कर दी और उच्च स्वरों में कहा , “ अब आप मरते क्यों नहीं ? लोगों का इतना रुपया ठग लिया । ” पुलिस ने बहुत कठिनाई से लोगों से महात्मा जी की जान बचाई । मोटर को दौड़ाकर थाना में ले गए । जब पुलिस ने वास्तविकता की जाँच - पड़ताल की तो महात्मा जी ने बलाया कि मुझे तो यह बात ज्योतिषी ने बतलाई थी । इस घटना ने एक मास तक लोगों को आश्चर्य में डाले रखा ।

☀️ लतालेवाले महात्मा बिशनदास — श्री पं० बिशनदास जी लतालेवालों को ज्योतिषयों ने बतलाया था कि आपकी आयु 69 वर्ष है , परन्तु आप 47 वर्ष की आयु में परलोक सिधारे ।

लाला सालिगराम जी जाखल मण्डी हरियाणा को पं० नन्दकिशोर मेरठ के भूगुसंहितावाले ज्योतिषी जी ने यह बतलाया था कि तुम विक्रम सम्वत् 1982 में स्वर्गवासी हो जाओगे । परन्तु वह आज - पर्यन्त ( सम्वत् 1997 में भी ) ठीक - ठाक जीवित हैं ।

☀️ भृगुसंहितावालों की गप्प - महाशय हंसराज जी आर्य , मन्त्री आर्यसमाज जाखल को इन्हीं पं० नन्दकिशोर जी भृगुसंहितावालों के सुपुत्र ने सुनाम के निकट गुजरॉ ग्राम में बतलाया था कि तुम्हारे तीन पुत्र होंगे और तीनों जीवित रहेंगे । परन्तु अब तक दो पुत्रों का जन्म हुआ है और दोनों ही मर गए हैं , वे भी ज्योतिषी जी के बतलाने से पहले ही । यह बात ग्यारह वर्ष पूर्व गुजरॉ में ज्योतिषी जी ने महाशय जी को भी बताई थी ।

☀️ ज्योतिषी का पुत्र गुरु - पिण्ड दादन खाँ के ज्योतिषी पं० अमरचन्द का पुत्र पाँच वर्ष से गुम है , परन्तु वह अब तक अपने पुत्र का पता नहीं लगा सके ।

☀️ जन्म का समय व भोग - ये ज्योतिषी लोग जो जन्मपत्री बनाते हैं , यह उस समय को ध्यान में रखकर बनाई जाती है कि जिस समय में किसी मनुष्य का जन्म होता है , और लोगों को आगे चलकर जो दु : ख व सुख प्राप्त होने हैं , वे बतलाते हैं । वे प्रत्येक व्यक्ति के नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार उसके वर्ग व राशि को निकालकर उस राशि का सुख व दु : ख बतलाते है ।

☀️ एक क्षण में अनेक का जन्म — अब यह बात विचारणीय है कि संसार में जिस क्षण एक राजा के घर पुत्र का जन्म होता है , उसी क्षण एक रंक के घर भी एक बालक का जन्म होता है । भाव यह है कि उसी एक क्षण में इस सृष्टि में अनेक जीवन विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं । यदि जन्म का समय ही किसी जीव के सुखी - दु : खी होने का कारण है तो ऐसे सब बच्चों का भाग्य एक समान होना चाहिए , परन्तु संसार में हमें ऐसा दिखाई नहीं देता ।

☀️ राशि से भोग का शुद्ध भ्रम - यदि संसार में किसी के नांम के प्रथम अक्षर से ही उसके भविष्य के सुख - दु : ख का पता चल सकता है तो क्या जिन मनुष्यों के नाम के प्रथम अक्षर एक - से हैं , उनके सुख - दु : ख आदि भोग क्या एक समान होते हैं ? कदापि नहीं , कदापि नहीं ।
साभार -✍🏻 पंo मनसाराम वैदिक तोप