Wednesday 1 August 2018

चे ग्वेरा: एक ज़ुनूनी क्रांतिकारी

चे ग्वेरा: एक ज़ुनूनी क्रांतिकारी
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जन्म: 14 जून 1928
वीरगति: 9 अक्टूबर 1967 ( उम्र 39 वर्ष )
असल नाम अर्नेस्तो "चे" ग्वेरा था. जन्म अर्जेंटीना के रोसारियो नामक स्थान पर हुआ था. पिता थे अर्नेस्टो ग्वेरा लिंच. मां का नाम था—सीलिया दे ला सेरना ये लोसा. बचपन में ही दमा रोग से ग्रसित होने की वज़ह से इस बालक के लिए नियमित रूप से स्कूल जाना संभव नहीं था. घर पर उसकी मां ने उसे प्रारंभिक शिक्षा दी. पिता ने उसको सिखाया कि किस प्रकार दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर शारीरिक दुर्बलता पर विजय पाना संभव है और यह भी कि इरादे मजबूत हों तो कैसे बड़े संकल्प आसानी से साधे जा सकते हैं.Image may contain: 1 person, text

कश्मीर-कलह पर भ्रांति निवारण

कश्मीर-कलह पर भ्रांति निवारण
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इस वक्त सोशल मीडिया पर जम्मू-कश्मीर को लेकर तथ्यविहीन बातों का अंधड़ सा चल रहा है! खासकर वहां की राजनीति, समाज, उसके भारत में सम्मिलन, संविधान के अनुच्छेद 370 और अलगाववाद के पैदा होने की वजह आदि जैसे विषयों पर! अज्ञानता के इस अंधड़ में कुछ अच्छे खासे शिक्षित लोगों को भी भ्रमित होकर भटकते देखा जा रहा है। हिंदी के ज्यादातर चैनल अज्ञानता के अंधड़ को और बढ़ा रहे हैं! उनके ज्यादातर एंकरों और वरिष्ठ पत्रकारों का कश्मीर-ज्ञान 'गूगल' या हिंदी अखबारों तक सीमित है। 
ऐसे में मेरा एक सुझाव है। इसे मित्र-गण अन्यथा नहीं लें! आपमें से ज्यादातर बहुत अच्छे प्रोफेशनल हैं! 
शिक्षक, पत्रकार, प्रोफेशनल्स और अन्य सभी शिक्षित मित्र-गण थोड़ा कष्ट करें। वैसे तो कश्मीर पर बहुत सारी किताबें बाजार में हैं। पर हिंदी में गिनी चुनी ही हैं। यहां अंग्रेजी और हिंदी की कुछेक किताबों की सूची दे रहा हूं, इनमें से किसी भी किताब को मंगाकर जरुर पढ़ें! इससे कश्मीर पर कम से कम तथ्यों की प्रमाणिक जानकारी मिल सकेगी। अज्ञानता और अफवाहों के अंधड़ से बचा जा सकेगा। सभी किताबें घर बैठे Amazon आदि से मंगाई जा सकती हैं।

जाति की ज़ाहिल जकड़न.....

जाति की ज़ाहिल जकड़न                
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जाति है कि लाख जतन करने पर भी भारतीय समाज से जाती नहीं। व्यक्ति चाहे उच्चतम पद पर आसीन हो जाए, उसकी पहचान और ख़ास जगहों पर उसके प्रति सलूक उसकी जाति के हिसाब से ही होता है।
समाज को दिमागी रूप से गुलाम बनाने की साजिश के तहत जाति व्यवस्था ( Caste system ) का जटिल व कुटिल जंजाल रचा गया था। सदियों पुरानी व्यवस्था है यह। भारतीय समाज की एक अत्यंत उत्पीड़नकारी, शोषणकारी घृणित व्यवस्था।
जिस चीज ने भारतीय समाज को भीतर से संवेदनहीन, न्यायपूर्ण चेतना से रहित और अमानवीय बना दिया, वह है, जाति- व्यवस्था। जाति-व्यवस्था पर टिका समाज हमें रोज- ब- रोज अतार्किक, विवेकहीन, कायर, पाखण्डी और ढोंगी बनाता है तथा व्यक्ति के आत्मगौरव और मानवीय गरिमा को क्षरित करता है। जाति- व्यवस्था ने एक ऐसा श्रेणी-क्रम रचा, जिसमें हर जाति किसी दूसरी जाति की तुलना में नीच है। इसने श्रम न करने वाले परजीवियों को श्रेष्ठ तथा शारीरिक श्रम करने वालों को नीच तथा महानीच बना दिया। उत्पादन तथा सेवा करने वालों को शूद्र तथा अन्त्यज कह कर घृणा, उपेक्षा, अपमान, तिरस्कार का पात्र बना दिया गया, यहां तक कि उनमें से बड़े हिस्से को अछूत घोषित कर कर दिया गया। मनुष्य जाति के इतिहस में मानव को अछूत घोषित कने की शायद यह एक मात्र व्यवस्था है।

राष्ट्रवाद ,विचार की ताक़त बेमिसाल होती है......

                 विचार की ताक़त बेमिसाल होती है।            --- प्रो. एच. आर. ईसराण                                                                                             विचार की काट विचार से ही होती है। तलवार और गोली विचारों की क़त्ल करने में नाकाम रहती हैं। दुनिया का इतिहास इस बात का गवाह है।
तंग दायरों में कैद रहने को उकसाने वाला सोच कभी सही सोच नहीं हो सकता। जड़ता का जनक होता है ऐसा सोच। निष्ठुरता को पोषित करता है ऐसा सोच।
परस्पर विरोधी विचारों को समझने से ही सत्य का मार्ग आलोकित होता है। पता नहीं कौनसा विचार कब दिमाग की बंद खिड़कियों को खोल डाले। जब परस्पर विरोधी विचारों के बीच दिमाग़ में जंग छिड़ जाए तो समझो कि द्वंद का समाधान अब नजदीक है। बिना राग- द्वेष के सोच-विचार करेंगे तो हम अपने को इंसानियत के हितैषी विचार के समर्थन में खड़ा पाएंगे। दकियानूसी सोच के दायरे घुटन भरे होते हैं। कुछ वक़्त मुक्त विचारों की खुली हवा में सांस लेकर तो गुजारिए। ताजग़ी का एहसास होगा।

नेल्सन मंडेला: सतत और सफ़ल संघर्ष की प्रतिमूर्ति

नेल्सन मंडेला: सतत और सफ़ल संघर्ष की प्रतिमूर्ति       ---प्रो. एच. आर. ईसराण
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दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन रोलीह्लला मंडेला को न्याय, समानता और सम्मान के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई का प्रतीक माना जाता है। हक़ के लिए दीर्घकालीन संघर्ष के प्रति समर्पित उन जैसे आज़ादी के दीवाने की दुनिया में दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल। सतत संघर्ष और साहस के बल पर दुनिया के इतिहास में अमिट छाप छोड़ने वाली इस बेमिसाल प्रेरणास्पद शख्सियत की स्मृति को सादर नमन।
जन्म: 18 जुलाई 1918 को म्वेज़ो, ईस्टर्न केप, दक्षिण अफ़्रीका संघ में ।
मृत्यु: 5 दिसंबर 2013 को 95 वर्ष की आयु में जोहान्सबर्ग (Johannesburg ) में ।
नेल्सन रोहिल्हाला मंडेला...यानी ‍वह शख्स, जिसको अपनी जिंदगी के 27 वर्ष केप टाउन के किनारे स्थित कुख्यात रॉबेन द्वीप जेल में नज़रबंद रहकर गुजारने पड़े। रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ते हुए जिंदगी में अनगिनत कष्ट सहे लेकिन हार नहीं मानी। कारवास के दौरान उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा। ज़ुल्मी सत्ता ने मंडेला को जब जेल में ठूंसा तब वे युवा थे, 27 वर्ष बाद जब जेल से मुक्त किया गया तब बुढ़ापा उन्हें अपने आगोश में ले चुका था। उम्र के असर से शरीर बूढ़ा पर आत्मबल अभी जवान था।

लोकतंत्र बना भीड़तंत्र Democracy turned Mobocracy

लोकतंत्र बना भीड़तंत्र 
Democracy turned Mobocracy 
********************************---- प्रोफ़ेसर एच. आर. ईसराण
आदमी का भीड़ में तब्दील होने का शौक उसकी बीमार मनोदशा का संकेत है। भीड़ के उन्माद का अपना खास मनोविज्ञान होता है। भीड़ दुःसाहस देती है पर आदमी की पहचान छीन लेती है। हम जानते हैं कि व्यक्ति की पहचान उसके विवेक से होती है, जबकि भीड़ की पहचान सिर्फ़ उन्माद से कारित करतूतों तक सीमित रहती है।
"Most people are other people. Their thoughts are someone else's opinions, their lives a mimicry, their passions a quotation," so says Oscar Wilde.
'ज़्यादातर लोग दूसरे लोग होते हैं। उनके विचार किसी दूसरे के विचार होते हैं, उनकी ज़िंदगियाँ दूसरों की नकल होती हैं, उनके आवेग दूसरों की बातों से बनते हैं।’ ऑस्कर वाइल्ड का यह कथन भीड़ की मनोदशा दर्शाने के लिए पर्याप्त है।
उन्मादी भीड़ की खास बात यह होती है कि उसमें कोई किसी को पहचाने यह जरूरी नहीं, लोग एक-दूसरे को देख कर, एक दूसरे की तरह आचरण करते हुए किसी हादसे को अंजाम देने में लग जाते हैं। भीड़ की घटिया हरकत के दौरान भड़काऊ आदमी अपनी पहचान पर आवरण डालने में सफ़ल हो जाता है। अहंकार और मानसिक खोखलेपन से ग्रस्त यह भीड़ किसी के इशारे पर या अफ़वाहों की 'हैवी डोज़' से उत्प्रेरित होकर यकायक जुटती है और निहत्थे और लाचारों को अपना शिकार बनाती है। गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से इस भीड़ की काली करतूतों की एक पैटर्न बन चुकी है।