Wednesday 30 October 2019

बचपन बाल मजदूरी से नौकरी तक

#बचपन_बाल_मजदूरी_से_नौकरी_तक_________सफर"__

 बात उन दिनों की है जब मैंने आठवीं की परीक्षा दे दी थी और गर्मियों की छुट्टियां थी मैं पहली बार कमठा मजदूरी पर गया था क्योंकि हालात ही कुछ ऐसे थे की मजदूरी करना मजबूरी था, मैं  मजदूरी करने जहां गया था वह एरिया जालौर जिले के सरवाना के आस पास नेहड़ में पड़ता है दूर-दूर तक कोई  गांव नहीं   था हम नहर का काम कर रहे थे नहर के पास डिग्गी बनाना डिग्गियों का प्लास्टर करना उनके पास बने होद की साफ-सफाई और उनमें पड़े बड़े पत्थरों को बाहर निकालना यह एक मेरे जैसे दुबले-पतले बच्चों के लिए आसान नहीं था लेकिन मजबूरी में करना पड़ता था वहां बाजार नजदीक नहीं था खाने के लिए सब्जी भी नहीं मिलती थी खाते तो बाजरे की रोटी और मिर्च और दाल।

 एक दिन शाम का टाइम था अंधेरा हो चुका था और एक बड़ी सी कटोरी में लाल मिर्च भिगो कर रखी थी पत्थरों  पर लकड़ियां जलाकर रोटियां पकानी पड़ती थी ,अंधेरा था तो कटोरी दिखी नहीं और मैं कुछ लेकर वापस बाहर निकल रहा था तो मेरा पैर कटोरी से टकराया और कटोरी खाली हो गई थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि मिर्च कहां है तो पता चला की कटोरी तो खाली है तो उन्होंने कहा कि कटोरी खाली कैसे हुई? इसको किसने ठोकर मारी? लेकिन मैंने भी कुछ कहा नहीं क्योंकि आपको पता ही है अगर सच बोलता तो भी डांट पड़ती है लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं शायद वो समझ गए कि जानबूझकर किसी ने ठोकर नहीं मारी है।

रूम के पास बने बड़े-बड़े होद मे से हम बड़े-बड़े पत्थर बाहर निकालते  थे और ऐसे काम करते-करते मेरे हाथ और कंधे पर बड़े-बड़े घाव हो गए थे , यह तो शुक्र है कि उस टाइम कोई स्मार्टफोन नहीं था वरना वह क्लिक देखकर हम रोते लेकिन  उसे तो कैसे भूल सकते हैं यह तो एक शुरुआत है उसके बाद भी अलग-अलग जगह हर साल छुट्टियों में मजदूरी करने जाता रहा...

 अगले साल नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं धानेरा कमठा मजदूरी करने गया सीमेंट की 14×09 इंच की ईंटे  उठा कर दीवार चुननी थी कारीगर  दीवार पर या पालक के सहारे खड़ा होता था और उसको यह ईंटे पकड़ानी होती थी ईंटे काफी  वजन दार थी मेरे लिए शुरुआत में यह काम बड़ा मुश्किल था और सुबह नाश्ते में छाछ और आधी रोटी मिलती थी।

 दसवीं बोर्ड के एग्जाम के बाद में विद्युत पोल खड़ा करने का उ
काम हेतु राजकोट गया था मुझे ले जाते वक्त  ठेकेदार ने कहा कि मुझसे हलका काम करवाएंगे लेकिन आप सब जानते हैं कथनी और करनी में कितना अंतर होता है वहां जाकर गुजरात की कठोर मिट्टी और पथरीली मिट्टी में खम्भा  खड़ा करने के लिए 5 फुट गहरा गड्ढा खोदना पढ़ता था यह काम बड़ा कठिन था  क्योंकि इसमें भुजाओं में दम और अनुभव होना जरूरी था और इनमें से मेरे पास कुछ भी नहीं था क्योंकि मैं दुबला पतला था और अनुभव तो था नहीं वह पथरीली जमीन में दिन भर में मैं एक कट्ठा खोद पाता था तभी हमारे साथ वाले मजदूर हमसे जल्दी गड्ढा खोद  देते थे वह जाकर पानी पीते और हम पर दबाव डालते कि तुम गड्ढा जल्दी खोदो वरना तुमको छाया में बैठने भी नहीं देंगे।

यह तो संघर्ष की मोटा माटी बातें हैं जिन हालातों से गुजरा हूँ उनको मैं गहराई से लिखना नहीं चाहता क्योंकि उनको लिखना और दोबारा जीना बड़ा कष्टदायी है ।

कॉलेज के दिन जिस फेक्ट्री में गुजारे उसका भी हाल कभी बयां करूँगा।

#नोट :- जिए पलों को लिखना उन्हें पुनः जीना है इसलिए यह पढ़कर आप भी अपने बचपन मे ,अतीत में डूब जाएंगे,यह लिखते हुए मेरी आँखों में आँसू आने लगे इसलिए इसको विराम देता हूँ।

No comments:

Post a Comment