Wednesday 10 October 2018

शहीद होने के बाद, परिवार की हकीकत -

शहीद होने के बाद, परिवार की हकीकत -

एक नजरजब एक सैनिक के शहीद होने के पश्चात जब उसका भौतिक शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ पैतृक घर आता है तब परिवार पर गुजरने वाली स्थिति से हम वाकिफ हैं।
अंतिम संस्कार के वक्त प्रशासनिक रश्मो के अलावा स्थानीय नेता औपचारिकता पूरी करते है- सामाजिक व राजनीतिक जरूरतों के मुताबिक तथा कुछ सामान्य जाने माने शब्दों का उदगार जैसे की - वीर पर्सूता भूमि, वीर नारी, शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाता, शहीद परिवार की हर संभव सहायता की जायेगी इत्यादि इत्यादि।
मिडिया प्रतिनिधि अखबारों में छापेंगे - शहीदों का गांव, शहीद के माता पिता ने कहा हम अपने दूसरे बेटे को भी सेना में भेजेंगे, विधवा पत्नि ने कहा मैं अपने बच्चों को बडा़ होने पर सेना में भेजूंगी वगैरह वगैरह।

यह भावनात्मक कहानी हर तिरंगे में लिपट कर आने वाली शहीदों के लिए दोहराई जाती है। कभी कभी कुछ अति उत्साहित नेता एक के बदले में दस सिर लाने के हवाई ख्वाबों का हवाई जहाज भी उडा़ते हैं। बीच बीच में मंत्री व नेता हमें यह अहसास भी करवा देते हैं कि सैनिक होते ही हैं मरने के लिए तथा मिडिया भी उसमें तड़का लगा देता है, और सबसे बडी़ परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि हम भी व्यक्तिगत व सामाजिक रूप से यह मान बैठे हैं या स्वीकार कर लिया है कि सैनिक के साथ यही हो सकता है, शहीद होना ही जैसे उसकी अंतिम परिणति है- इससे आगे हमारी सोच को कुंद कर दिया गया है।
अाज आपके साथ एक शहीद सैनिक के परिवार की आप बीती साझा करने का प्रयास :
सैनिक जम्मू-कश्मीर में आंतकवादीयो के search and destroy मिशन के दौरान शहीद हो जाता है, घर परिवार को सूचना व अंतिम संस्कार कर दिया जाता है तथा उपर लिखित रश्मे पूरी कर दी जाती है परन्तु असली अनूभव अब शुरू होता है।
(1) शहीद की पत्नी जम्मू के एक काँलेज से BEd कर रही होती है व पति की शहादत के दो महीने बाद परिक्षा देकर उत्तीर्ण हो जाती है। यह कालेज वैष्णो देवी मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है, अब जब documents issue करने का समय आया तो पैसे की मांग रखी गई, परिवार ने विरोध जताया, नहीं माने, परिवार के सदस्यों ने इनके पति के जम्मू कश्मीर में शहीद होने की बात बताई व दुहाई दी की कम से कम शहीद परिवार की इतनी लाज तो रख लो - जी नही यह भी स्वीकार नहीं, अंत मे परिवार के सदस्यों ने बात को आगे न बढ़ाते हुए पैसे देकर सारे कागजात हासिल किये। यहां गौर करने वाली बात यह है कि सैनिक शहीद हुआ जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा के लिए, दूसरी बात कालेज वैष्णो देवी ट्रस्ट की जो कि शेरों वाली माता का प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी अखंड जोत कभी बुझती नहीं तथा लाखों लोग हर साल आशिर्वाद लेने जाते हैं, लगता है जब शहीद परिवार से पैसे लिए जा रहे थे तब माता को नींद आ गयी थी या जोत में तेल/घी खत्म हो गया था, अब इन मंदिरों के ट्रस्टी कौन है वो बताने की जरूरत नहीं है।
(2) अब दूसरे वाकये की दास्तान, शहीद परिवार सरकार द्वारा दी गयी सुविधा के लिए एक जगह पर जमीन के conversion की आवश्यकता पड़ी, तो नगर परिषद में फार्म भरा गया, फीस जमा की गई, तीन महीने चक्कर लगाते रहे काम नहीं बना, किसी व्यक्ति ने सलाह दी की भैया बिना पैसे दिये यहाँ पत्ता भी नहीं हिलता व पैसा नगर परिषद के अध्यक्ष क़े स्तर पर लिया जाता है, थक हार कर वहाँ भी पैसे देने के तुरंत बाद पांच दिन में काम हो गया। अब देखिए की नगर परिषद के अध्यक्ष मुस्लिम समुदाय से, मुस्लिम बहुत बार सुनाते हैं कि "म्हारळा धर्म थारले धर्म से चोख्या है"। अमूमन इस धर्म को ईमान का धर्म माना जाता है, एक सच्चा ईमान वाला मुस्लिम रात का खाना खाने से पहले यह सुनिश्चित करता है कि उसके घर के चालीस कदम की दूरी पर कोई भूखा नही रहे उसके बाद ही खुद भोजन करता है। यह भी कहा जाता है कि खुदा के फरिश्ते कंधे पर विराजमान रहते हैं व कुछ भी गलत करने से पहले आगाह कर देते हैं ताकि गल्ती ना हो। लेकिन लगता है जब शहीद परिवार नगर परिषद के अध्यक्ष के चक्कर लगा रहा था व पैसे दिए गए तब ईमान भी डोल गया, फरिश्ते भी कहीं सैर सपाटे के लिए चले गये व खुदा को भी झपकी आ गयी और इतने में काम हो गया।
(3) तीसरा वाकया, गांव के एक पंडित जी का कथन कि " परिवार के तो वारे नारे हो गये, सरकार से करोड़ों रुपये मिलेंगे - शहीद तो एेसे ही होते रहते हैं", कहा जाता है कि पंडित जी के पिताजी गांव ढाणी से आटा मांग कर परिवार पालते थे, उन्हें भी उस दिन दिव्य ज्ञान हो गया व मां सरस्वती जुबान पर विराजमान हो गई।
यह एक चित्रण है हमारे समाज व व्यवस्था का। आप के साथ साझा करने का उद्देश्य सिर्फ यह है कि एक सैनिक अपनी युनिट, पल्टन, बटालियन की शान व रेजिमेंट की ईज्जत के लिए अपने आप को समर्पित करता है- वह एवं उसका परिवार ईज्जत का हकदार है, हम कैसे ईज्जत बख्शते हैं यह हमारे पर निर्भर है।
हम नेताओं के जयकारे लगाते हैं, जरूर लगाएं, नेताओं के व नेताओं की पूंछो का भी लेकिन कुछ सवाल जरूर पूछें -
(1) सैनिकों की मौत क्यों हो रही है?
(2) आप या आपकी पार्टी क्या कदम उठा रही ताकि मौतें बंद हो?
(3) आपके परिवार से कौन कौन सेना में है?
(4) यदि आपके परिवार से नही है तो आप कब भेज रहे हैं, यदि नही भेज रहे तो क्यों नहीं ?
यह सवाल इसलिए पूछें क्योंकि सैनिक मरने के लिए सेना मे नहीं जाते हैं व बहुतायत में गांव एंव गरीब तबके से जाते है और इनकी अनुपस्थिति में परिवार व बच्चों का जीवन बहुत कष्टमय हो जाता है, इनके वाजिब जवाब मिलने पर ही वो आपकी जयकार के हकदार बनते हैं अन्यथा व्यर्थ।

No comments:

Post a Comment