Friday, 3 July 2020

औरत का चरित्र

औरत का कोई चरित्र नहीं होता
उसका चरित्र तो गढ़ा जाता है
आँका जाता है
उसकी पोशाक से..
उसके देखने के अंदाज़ से..
उसकी मुस्कराहट से
किसी से हंस कर बात करने से..
दुपट्टा सरक जाने से
स्कर्ट में दिखती टांगो से
साड़ी से दिखती नाभि से..
बालो की उलझी बिखरी लटों से
बेसबब मुस्कुराहट से....
ये ही तो कराते हैं पहचान चरित्र की--उफ्फ
चरित्र गड़ा जाता है
होंठो की गहरी लाली में
आँखों के काजल में
गर्दन के लिपटे काले मोतियों में
हाथों के कंगन में
पायल की झुनझुन में..
हैं न ??
किसी को दिख पाते हैं
भीतरी मन के कोने में
छुपे हुए चरित्र के रंग ..??
कोमल स्वभाव.. चाहत भरा ठहराव. ...
अटूट स्नेह, अथाह सहिष्णुता,
निःस्वार्थ समर्पण ।

ना ना पर .. ये सब तो बेकार की बाते हैं
औरत का तो चरित्र ही नहीं होता ।
उसका चरित्र तो प्रकृति द्वारा अतःकरण से गढ़ा जाता है ।.... बस..... उसे देखने के लिए हमारे पास आंखें होनी चाहिए..... लेकिन अफसोस यह की होती नहीं.... ❤️😍
ओशो ❤️

भला क्या है??

आचरण में अति न भली, रति न भला अभिमान।
काम क्रोध कभी न भला, कड़वी  भली न जबान।।

निर्बल की हाय  भली न, संत का भला न शाप।
पर नारी प्रीत न भली, मन का भला न पाप।।

दुर्बल से रार भली न, ब्राह्मण भली न लात।
जीव  सताया कभी भला न, कीनी भली न घात।।

बादळ तो ब़ूठा भला, बहता भला' नीर।
तुरंग (घोड़ा) तो ताकड़ा भला, धीमा भला समीर।।

भाण उगता 'तेज' भला, मंदा भला अवसाण।
उतरादी बिरखा भली, दक्खिण भला उफाण।

जड़ां तो पाताळ भली, शिरा भली आकाश।
रहणो तो भाईयो मे भलो, होवो भलेही खट्टास ।।

वैरी का विनाश भला, मीत  भला उपकार।
दुर्जन (दुष्ट) की दूरी भली, साध भला सत्कार।।

निज पाणि पतवार भली, आत्म भला विश्वास।
डूबत को तिनका भला, अन्त भली अरदास।।

मन की तो माळा भली, तन का भला तपाव।
कहे 'उगम' ऊँचो तो आचरण भलो, निर्मल भलो सभाव।।
🙏🙏🙏🙏jakhar,,,,

Friday, 24 April 2020

शिक्षकों को समर्पित चंद पंक्तिया

काफी पुरानी पोस्ट है, repost कर रहा हूं..


Proud to be a Teacher :

किसी ने साधारण से दिखने वाले शिक्षक से पूछा - क्या करते हो आप ??
शिक्षक का सुन्दर जवाब देखिए-
सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ ।
नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ ।।
चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी ।
तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ ।।
समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के ।
और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ ।।
बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज ए खलीफा ।
अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ ।।
Dedicated to all teachers

Saturday, 21 March 2020

व्याख्याता दल्लाराम सहारण जीवन लेख

#आत्मकथ्य_आभार
                            ऐ खुदा!
                                        धन्यवाद।
                       जीवन में दुःख, मुसीबत, जोखिम और चुनौतियों को देने के लिए, क्योंकि मैंने अपने जीवन में सबसे अधिक ऐसे ही हालातों से सीखा हैं।।
           मेरा जन्म सन 1986 ईस्वी अर्थात संवत 2044 (चमाळे काळ)में सियोलों का डेर (बामरला) में हुआ। मेरी प्राथमिक शिक्षा (1991-96)घर के पास ही स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय सियोलों का डेर में प्रथम गुरु चेतनराम जी सियोल एवं पूनमाराम जी भांभू के सानिध्य में हुई तत्पश्चात माध्यमिक शिक्षा (1996-2001)के दौरान राजकीय माध्यमिक विद्यालय बामरला में श्री नवलाराम जी सियोल,स्वर्गीय सोनाराम जी सारण, सत्यपाल सिंह जी ,ओमप्रकाश जी जांगिड़ ,सुखराम जी बाना, गुलाब सिंह जी परिहार, स्वर्गीय प्रकाश जी ,स्वर्गीय रूपाराम जी लूखा, जयंतीलाल जी सोनी, बाबूलाल जी खत्री इत्यादि गुरुजनों का सानिध्य मिला जो मेरे जीवन के अध्ययन काल का स्वर्णिम युग था। यहीं से कक्षा दसवीं में 70.17% अंकों के साथ कक्षा में द्वितीय स्थान हासिल किया और उसके बाद राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय स्टेशन रोड बाड़मेर में 11वीं क्लास में विज्ञान वर्ग में प्रवेश लिया लेकिन साइकिल चलाने के शौक, शहरी चकाचौंध, अंबर सिनेमा की फिल्में, नए मित्रों की संगति, स्वविवेक के अभाव , विद्यालय में नियमित कक्षाओं के अभाव, किशोरावस्था की स्वाभाविक प्रवृत्तियों, मार्गदर्शन की कमी एवं कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से ट्यूशन न जाने के कारण केमिस्ट्री-फिजीक्स मे पूरक/सप्लीमेंट्री आ गई (यह मेरे लिए बड़ा आघात था मगर कहावत भी है ठोकरें ही आदमी को चलना सिखाती है )जिसकी वजह से कक्षा 12वीं में पुनः राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय धोरीमन्ना में कला वर्ग में प्रवेश लेकर मात्र 57% अंकों के साथ 2003में उत्तीर्ण की। दसवीं की बनिस्पत बारहवीं में 14% अंकों की गिरावट आते ही माथा ठनका मगर 'बीति ताहि बिसार दे आगे की सुध लेहि' की तर्ज पर कुछ करने की ठानी।
               12वीं की परीक्षा के बाद कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते कुछ महीनों तक धोरीमना में ही राठी कम्युनिकेशन (STD) पर ₹500 मासिक पर नौकरी की, उसके बाद बाड़मेर कॉलेज में अध्ययन के दौरान निजी स्कूलों में ₹600 मासिक पर पढ़ाना भी प्रारंभ किया और साथ ही होम ट्यूशन भी पढ़ाया। ऐसे करते-करते 2006 में ग्रेजुएशन कंपलीट किया तत्पश्चात धोरीमना में स्थित श्री विजय मेमोरियल स्कूल में 2006-11तक अध्यापन कार्य करवाते हुए राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर से B.Ed एवं जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर से M.A(हिंदी साहित्य) की डिग्री भी हासिल की।
                  2011-12 में एम के मेमोरियल शिक्षण संस्थान सीकर(जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट) में नौकरी करते हुए तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा में रेंक 80 के साथ लेवल -2 हिंदी के पद पर चयनित होकर 11 सितंबर 2012 को राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय तिलोक नगर( लोहारवा) में पदस्थापन हुआ जहां नौकरी करते हुए वरिष्ठ अध्यापक एवं व्याख्याता भर्ती की भी तैयारी की मगर थोड़े-से अंतर से वंचित रह गया लेकिन इसी दरम्यान जून 2015 में यूजीसी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में प्रथम प्रयास में हिंदी साहित्य में NET डिग्री के साथ JRF अवार्ड हेतु भी चयन हुआ जिसने मेरे अरमानों को पंख लगा दिए, उस समय पीएचडी करने का विचार आया मगर इसी दौरान पुनः व्याख्याता भर्ती आने पर पीएचडी का सपना छोड़कर इस परीक्षा की तैयारी में जुट गया और पूरे राजस्थान में 116वीं रेंक के साथ हिंदी साहित्य विषय में व्याख्याता पद पर चयनित होकर 21 जून 2017 को राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय केकड़ में पदभार ग्रहण किया जहां मैं अभी तक कार्यरत हूं और इन 15 सालों के अध्यापन काल के दौरान अपने कर्तव्य का पूर्ण ईमानदारी से निर्वहन करते हुए हजारों विद्यार्थियों के जीवन निर्माण में यथासंभव समर्पण किया और आज इस बात की खुशी है कि सैकड़ों विद्यार्थी आज सफलता के उन उच्चतम मुकामों पर पहुंचे हैं(जिनमें मैं भी अपने योगदान का अंश ढूंढता हूं) जहां मैं नहीं पहुंच पाया अर्थात गुरु भले ही गुड़ रह गए मगर चेले शक्कर हो गए।
                   खैर सपनों और महत्वाकांक्षाओं का कोई अंत नहीं मगर अपने माता-पिता, गुरुजनों एवं समाज के वरिष्ठजन के आशीर्वाद, मित्रों के स्नेह एवं छोटों की दुआओं के  फलस्वरूप आज अपने जीवन में सुख एवं संतोष का अनुभव कर रहा हूं।
 
                 आज मेरे कागजी जन्मदिन(21 मार्च) के अवसर पर आप सभी वरिष्ठ जनों, गुरुजनों, समवयस्क मित्रों, छोटे भाइयों एवं अन्य सभी  सोशल मीडिया के जाने -अनजाने मित्रों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस अदने- से व्यक्ति को जो प्यार, स्नेह, अपनत्व और आशीर्वाद अर्पित किया है , उसे पाकर अभिभूत हूं एवं आप सबके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए परम पिता परमेश्वर से कामना करता हूं कि आप सब बड़ों का आशीर्वाद, समकक्षों का दोस्ताना एवं छोटों का स्नेह सदैव यूं ही मुझे मिलता रहेगा ।
       कुछ मित्रों ने मेरे बारे में तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बनाते हुए जो अतिशयोक्ति पूर्ण व्यक्तित्व चित्रण किया है, उसे पढ़कर मैं स्वयं को बौना महसूस कर रहा हूं क्योंकि मुझे खेद है कि मैं स्वयं को इतनी प्रशंसा के काबिल नहीं बना सका और मैं यह बिना किसी हिचक एवं संकोच के स्वीकार भी करता हूं कि मेरे निजी जीवन में अभी अनगिनत कमियां हैं मगर भविष्य में आपके इन शब्दों को सही अर्थों में चरितार्थ करने का भरसक प्रयत्न करूंगा।
         हां, इतना संतोष जरूर है कि मेरी वजह से आज तक मेरे परिवार को कभी कोई उलाहना नहीं सुनना पड़ा और ना ही उन्हें कहीं नीचा देखने की नौबत आई। साथ ही परिस्थितियों को समझते हुए कक्षा बारहवीं के बाद कभी घर से पढ़ाई का खर्चा मांगे बिना भी अपने पैरों पर खड़ा होने में कामयाब हो सका।
              हालांकि इस सोशल मीडिया की दुनिया में प्रवेश किए हुए मुझे बहुत कम समय हुआ है लेकिन इस आभासी दुनिया में भी आप सब ने जिस प्रकार सच्ची मित्रता का अहसास करवाया है, इसके लिए आप सब का शुक्रगुजार हूं ।साथ ही यह भी अनुरोध करता हूं कि इस सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर जाने अनजाने में कहीं कोई  त्रुटि हुई हो तो क्षमा प्रदान करना हालांकि कभी कभार मेरे शब्दों में त्रुटि जरूर हुई होगी लेकिन मेरी भावनाएं सदैव आप सब के प्रति शुद्ध थी ,है और रहेगी।
           ईश्वर से यही कामना है कि मुझे अपने कर्तव्य पथ पर सदैव अग्रसर रहने एवं आप सबके साथ मधुरतापूर्ण संबंध बनाए रखने की काबिलियत प्रदान करे।
पुनश्च आप सभी शुभचिंतकों का हार्दिक आभार एवं साधुवाद।

इंसान बना कर भेजा धरती पर,
करता हूं उस खुदा का आभार।
लेकर आए जो दुनिया में,
करता हूं माता-पिता का आभार।
ज्ञान दिया जिन्होंने,
करता हूं उन सद्गुरु का आभार।
हर मुश्किल, हर गम, जिस ने जीना सिखाया,
करता हूं उन सब का आभार।
सुख -दुख में खड़े रहे मेरे साथ,
उन सब दोस्तों का आभार।
जन्म से लेकर जो मेरे साथ है,
हर पल मुझे कुछ ना कुछ सिखाती है।
करता हूं उस जिंदगी का आभार।।(लव यू जिंदगी)

( नोट-कोरोना के भयंकर प्रकोप के चलते जन्मदिन की पार्टी कुछ समय के लिए स्थगित करनी पड़ रही है जिसका मुझे बेहद खेद है लेकिन आप सब इस भीषण आपदा के समय स्वयं को एवं अपने परिवार और समाज को सुरक्षित रखने हेतु जनता कर्फ्यू में भागीदारी सुनिश्चित कर राष्ट्रहित में अपना अंशदान जरूर अर्पित करें क्योंकि जान है तो ही जहान है)

आपका अपना
दल्लाराम चौधरी

Sunday, 24 November 2019

दीनबन्धु सर छोटूराम जी :-एक महान शख्सियत

श्री सोहनलाल शास्त्री , विधावाचस्पति , बी.ए., रिसर्च आफिसर ,राजभाषा (विधायी) आयोग , विधि मंत्रालय (भारत सरकार )

स्वर्गीय चौधरी छोटूराम जी मेरी दृष्टि मे कर्मवीर योद्धा के साथ साथ महापुरुष भी थे ।महापुरुष के लक्षण हैं जिस मे दीन, दुःखी , दरिद्र और अन्याय पीड़ित जनसमुदाय के लिए पूर्ण सहानुभूति हो ।वीर तो डाकू भी हो सकता हैं और कर्मवीर उसे कहा जाता हैं जिसका जीवन केवल कथनी पर निर्भर न हो , करनी पर आधारित हो।एक कर्मवीर योद्धा यदि अपने परिश्रम से कोई सिद्धि या निधि प्राप्त कर ले किन्तु उस फल का उपभोग स्वयं ही करे या केवल अपने बंधुओ तथा सगे सम्बन्धियो को उसके उपभोग का पात्र ठहराए तो वह महापुरुष नहीं कहला सकता ।

Wednesday, 20 November 2019

विभिन्न महत्वपूर्ण सूत्र, मानक ,चिह्न

*बहुत मेहनत के बाद यह चिन्ह तैयार किया हैं अतः आप से निवेदन हैं कि आप इसे हर students से सहभागिता करें...*✍🏻✍🏻✍🏻 
यह पोस्ट सोशल मीडिया से साभार है।            
1)  +   =  जोड़

2)  --  =  घटाव

3)  ×  =  गुणा

4)  ÷   =  भाग

5)  %  =  प्रतिशत

Wednesday, 30 October 2019

बचपन बाल मजदूरी से नौकरी तक

#बचपन_बाल_मजदूरी_से_नौकरी_तक_________सफर"__

 बात उन दिनों की है जब मैंने आठवीं की परीक्षा दे दी थी और गर्मियों की छुट्टियां थी मैं पहली बार कमठा मजदूरी पर गया था क्योंकि हालात ही कुछ ऐसे थे की मजदूरी करना मजबूरी था, मैं  मजदूरी करने जहां गया था वह एरिया जालौर जिले के सरवाना के आस पास नेहड़ में पड़ता है दूर-दूर तक कोई  गांव नहीं   था हम नहर का काम कर रहे थे नहर के पास डिग्गी बनाना डिग्गियों का प्लास्टर करना उनके पास बने होद की साफ-सफाई और उनमें पड़े बड़े पत्थरों को बाहर निकालना यह एक मेरे जैसे दुबले-पतले बच्चों के लिए आसान नहीं था लेकिन मजबूरी में करना पड़ता था वहां बाजार नजदीक नहीं था खाने के लिए सब्जी भी नहीं मिलती थी खाते तो बाजरे की रोटी और मिर्च और दाल।

 एक दिन शाम का टाइम था अंधेरा हो चुका था और एक बड़ी सी कटोरी में लाल मिर्च भिगो कर रखी थी पत्थरों  पर लकड़ियां जलाकर रोटियां पकानी पड़ती थी ,अंधेरा था तो कटोरी दिखी नहीं और मैं कुछ लेकर वापस बाहर निकल रहा था तो मेरा पैर कटोरी से टकराया और कटोरी खाली हो गई थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि मिर्च कहां है तो पता चला की कटोरी तो खाली है तो उन्होंने कहा कि कटोरी खाली कैसे हुई? इसको किसने ठोकर मारी? लेकिन मैंने भी कुछ कहा नहीं क्योंकि आपको पता ही है अगर सच बोलता तो भी डांट पड़ती है लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं शायद वो समझ गए कि जानबूझकर किसी ने ठोकर नहीं मारी है।

रूम के पास बने बड़े-बड़े होद मे से हम बड़े-बड़े पत्थर बाहर निकालते  थे और ऐसे काम करते-करते मेरे हाथ और कंधे पर बड़े-बड़े घाव हो गए थे , यह तो शुक्र है कि उस टाइम कोई स्मार्टफोन नहीं था वरना वह क्लिक देखकर हम रोते लेकिन  उसे तो कैसे भूल सकते हैं यह तो एक शुरुआत है उसके बाद भी अलग-अलग जगह हर साल छुट्टियों में मजदूरी करने जाता रहा...

 अगले साल नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं धानेरा कमठा मजदूरी करने गया सीमेंट की 14×09 इंच की ईंटे  उठा कर दीवार चुननी थी कारीगर  दीवार पर या पालक के सहारे खड़ा होता था और उसको यह ईंटे पकड़ानी होती थी ईंटे काफी  वजन दार थी मेरे लिए शुरुआत में यह काम बड़ा मुश्किल था और सुबह नाश्ते में छाछ और आधी रोटी मिलती थी।

 दसवीं बोर्ड के एग्जाम के बाद में विद्युत पोल खड़ा करने का उ
काम हेतु राजकोट गया था मुझे ले जाते वक्त  ठेकेदार ने कहा कि मुझसे हलका काम करवाएंगे लेकिन आप सब जानते हैं कथनी और करनी में कितना अंतर होता है वहां जाकर गुजरात की कठोर मिट्टी और पथरीली मिट्टी में खम्भा  खड़ा करने के लिए 5 फुट गहरा गड्ढा खोदना पढ़ता था यह काम बड़ा कठिन था  क्योंकि इसमें भुजाओं में दम और अनुभव होना जरूरी था और इनमें से मेरे पास कुछ भी नहीं था क्योंकि मैं दुबला पतला था और अनुभव तो था नहीं वह पथरीली जमीन में दिन भर में मैं एक कट्ठा खोद पाता था तभी हमारे साथ वाले मजदूर हमसे जल्दी गड्ढा खोद  देते थे वह जाकर पानी पीते और हम पर दबाव डालते कि तुम गड्ढा जल्दी खोदो वरना तुमको छाया में बैठने भी नहीं देंगे।

यह तो संघर्ष की मोटा माटी बातें हैं जिन हालातों से गुजरा हूँ उनको मैं गहराई से लिखना नहीं चाहता क्योंकि उनको लिखना और दोबारा जीना बड़ा कष्टदायी है ।

कॉलेज के दिन जिस फेक्ट्री में गुजारे उसका भी हाल कभी बयां करूँगा।

#नोट :- जिए पलों को लिखना उन्हें पुनः जीना है इसलिए यह पढ़कर आप भी अपने बचपन मे ,अतीत में डूब जाएंगे,यह लिखते हुए मेरी आँखों में आँसू आने लगे इसलिए इसको विराम देता हूँ।

कॉलेज लाइफ

#कॉलेज_लाइफ_की_जंग_शराबियों_के_संग●●●●●●●

2014 में 12वीं पास करने के बाद पहले प्रयास में मेरा एसटीसी में चयन हो गया था मुझे श्री लाल बहादुर शास्त्री एसटीसी कॉलेज जोधपुर अलॉट हुआ था मैं पहली बार किसी बड़े शहर में गया था क्योंकि इससे पहले मैं कभी बाड़मेर भी नहीं  रहा मैंने रहने के लिए कमरा किराया लेने की बजाए हालात को ध्यान में रखते हुए एक फैक्ट्री का सहारा लिया।
 मैं शुरुआत में जिस फैक्ट्री में रहा वह टेक्सटाइल की फैक्ट्री थी कपड़ों की धुलाई और रंगाई का काम था वहां काम करने वाले लोग मांसाहारी थे और वह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था मैं तो दुकान पर लिखे  झटका मीट जैसे नाम देखकर भी कंप कंपा उठता था, यह पहली बार था जब मैं घर से दूर  रह रहा था वहाँ  मेरा जी नहीं लग रहा था फिर मेरी बात मेरे ही गांव के मोडाराम जी सारण से हुई उन्होंने कहा कि बालसमंद में एक टाइलों की फैक्ट्री है वहां ओगाला बाड़मेर के कुछ आदमी काम करते हैं , मैं पहले मदेरणा कॉलोनी में रहता था और बाद में यह दूसरी फैक्ट्री देखने बालसमंद गया था मैं फैक्ट्री देखने गया तो वहां कोई नहीं था फैक्ट्री के गेट पर सांकल यानी जंजीर से  ताला लगाया गया था क्योंकि गेट बेढंगा था  और दोनों फाटक आपस में इतने दूर हो सकते थे कि मैं उसके अंदर घुस के मैंने देखा और यह पहले वाली फैक्ट्री से ठीक थी तो मैंने यहां रहना शुरू कर दिया इस फैक्ट्री के मालिक श्री जगदीश सिंह जी पंवार जोधपुर का काफी जाना पहचाना नाम है ,उनके सुपुत्र मनीष जी फैक्ट्री  का संचालन देखते थे मैं वहां रहने लगा जो टाइल बनाने काम करते थे डेढ़ महीने बाद वापस आए फिर उनसे मुलाकात हुई और मेरा अकेलापन दूर हो गया  टाइलें  बनाने का काम करने वाले सभी लोग मेरा साथ देते थे उन्हें मेरे फैक्ट्री में रहने से कोई एतराज नहीं था वह तो यह कहते थे तुम फैक्ट्री में रहते हो हम देर सबेर कभी भी आते हैं बिस्तर बर्तन  सही स्थान पर मिलते हैं लेकिन जो फैक्ट्री में ड्राइवर लोग थे सेठ जी के तीन चार गाड़ियां और एक JCB भी थी उनके ड्राइवरों को मेरा रहना रास नहीं आया।

 मैं कॉलेज साइकिल पर जाता था बाकी के टाइम में मैं फैक्ट्री में ही रहता था फैक्ट्री लगभग ज्यादातर टाइलों से भरी रहती थी और हर जगह तराई के कारण पानी फैला होता था ,मच्छर बहुत होते थे।

ड्राइवर चाहते थे कि मैं फैक्ट्री में नहीं रहूँ ताकि वे  बिंदास होकर शराब पी सके और भी अपने सपने सजा सके फैक्ट्री मालिक नशे के सख्त खिलाफ खिलाफ थे अगर उनको किसी दिन  पता चलता कि आज किसी ड्राइवर ने शराब पी तो वे  उनको खूब  डांटते थे ।

उस फैक्ट्री में सिर्फ तीन कमरे थे एक कमरा सीमेंट से भरा हुआ होता था दूसरे कमरे में टाइलें बनाने वाले रहते थे और तीसरे कमरे में कबाड़ भरा हुआ था उस कमरे में दो पलंग मुश्किल से आते थे मैं उसी कमरे में खाना बनाता ,सोता था पढ़ाई भी उसी में करता था मैं जिस कमरे में सोता था उसमें एक अधेड़ ड्राइवर भी सोता था  वह शराब पीकर जल्दी खाना खा लेते थे 9:00 बजे तक सो जाते थे सोते वक्त यह कहकर लाइट बंद करवा देते थे कि उन्हें नींद नहीं आती और मुझे यह मजबूरी लाइट बंद करनी पड़ती  क्योंकि वहाँ  उनकी हैसियत बड़ी थी मुझसे और मुझे अपनी पढ़ाई छोड़ कर 9:00 बजे सोना पड़ता लगभग 10:00 बजे ड्राइवर फिर उठता और लाइट चालू करके पेशाब करने बाहर जाता था फिर वह लाइट रात भर चालू लेकिन उसके बाद मैं भी रात को उठ नहीं पाता मैं सुबह उठता है और अपनी पढ़ाई करता है खाना बना कर तैयार होकर कॉलेज जाता ऐसे ही दिन कटते थे कई बार ड्राइवर बाहर  साइड पर होते थे तो मुझे कॉल करके कहते कि तुम ठेके से हमारे लिए दारु लाकर रखो क्योंकि हम आएंगे तब तक ठेका बंद हो जाएगा लेकिन मैं साफ इंकार कर देता वह मुझसे इससे और ज्यादा  खफा होने लगे हां एक बात है कि जब कभी भी मुझसे पास के होटल से खाना मंगवाते तो मैं  जरूर लाकर रखता था लेकिन शराब कभी नहीं लाया ।

#मोबाइल_और_पैसों_की_चोरी________

 एक दिन मुझे बुखार आ गया था और मैं सीमेंट वाले रूम में सो गया था ताकि मुझे कोई डिस्टर्ब ना करें उस रात तीन ड्राइवर आए थे मैं हमेशा जिस रूम में सोता था उस रूम में पैसा और कुछ जरूरी सामान रखने के लिए 15 KG घी के डिब्बे से लॉक लगाकर संदूक बनाई थी मैं उसमें अपना सामान पैसे रखता था उसका कुंठा लोहे के तार का बना होता उस  रात भी ड्राइवरों ने शराब पी रखी थी लोहे के सरिया से उस डिब्बे का कुण्टा निकाल लिया  उसी डिब्बे में सैमसंग का एक मोबाइल था जो मैंने अपने कॉलेज के सहपाठी  से 3000 में खरीदा था उसमें कुछ मिस्टेक थी इसलिए मैंने उनको ठीक नहीं कराया और कोई दूसरा पुराना मोबाइल मेरे पास था मैं उसका उपयोग कर रहा  था मैंने सैमसंग का मोबाइल उस डिब्बे में रख दिया था डिब्बे में ₹1000 का नोट भी था दोनों उस  रात को गायब हो गए।

 मैंने तीनों ड्राइवर से पूछा लेकिन किसी ने कबूल नहीं किया मैंने फैक्ट्री मालिक को भी बताया लेकिन उन्होंने भी ड्राइबरों को कहा तो था कि अगर लिए हैं तो उसके वापस कर दो लेकिन कुछ नहीं हुआ  इस घटना से मैं बहुत दुखी हुआ और मैं घर आना चाहता था लेकिन उस वक्त टाइल बनाने वाले भी  गांव आए हुए थे मेरे पास किराए के पैसे नहीं थे क्योंकि जो पैसे थे वह चुरा लिए गए थे।मैंने फैक्ट्री मालिक से पैसे उधार लिए उन्होंने मुझे सिर्फ ₹400 दिए और मैं गांव आ गया  लेकिन मैंने घर पर नहीं बताया कि ऐसी घटना हुई है क्योंकि घर वाले बहुत ज्यादा दुखी होते......

मैं साइकिल से कॉलेज आता जाता था  कॉलेज शास्त्री नगर में था और फैक्ट्री बालसमंद मंडोर के पास प्रतिदिन 15 किलोमीटर का सफर था मैं फैक्ट्री छोड़ नहीं सकता था क्योंकि मैं अगर रूम लेकर रहता तो  कोई साथी नहीं था क्योंकि सभी मेरे सहपाठी पहले से ही अपने हिसाब से रह रहे थे और मैं अकेला रूम लेता तो उसका किराया मेरे लिए  भारी पड़ता ।

मैं फैक्टरी में काम भी करता था ,छुट्टी के दिन टाइलें  भरकर सप्लाई की जाती थी तो मैं गाड़ी में टाइलें  भरने का काम करता था उसमें कुछ राशि मिल  जाती थी एक बार कॉलेज के मेरे साथियों ने मेरी आर्थिक मदद करनी चाही  लेकिन मैंने मना कर दिया ।

 मुझे मजबूरी में  2 साल इसी फैक्ट्री में गुजारने पड़े मैं घर से गेहूं लेकर जाता था ताकि मेरा बजट ज्यादा बढे नहीं, आने जाने के लिए भी मैं अपने  रिश्ते में चाचा श्री धनाराम जी के साथ गाड़ी में आता जाता था उनके पास माल वाहक गाड़ी थी जो नागौर से राजकोट के मध्य चलती है एक बार मैं घर आ रहा था और मेरी धनाराम जी से बात हुई उन्होंने कहा की हम शाम को 10:00 बजे तक पाल बाईपास आ जाएंगे क्योंकि  नागौर से पाल बाईपास होते हुए आते  थे मैं सिटी बस से 7:00 बजे पाल बाईपास के पास स्थित पेट्रोल पंप पर पहुंच गया  मैं गाड़ी का इंतजार कर रहा  था 10 बजे के आसपास उन्होंने कॉल किया गाड़ी पंक्चर हो गई है इसलिए आने में वक्त लगेगा आप वहीं पेट्रोल पंप पर  सो जाओ, मैं पेट्रोल पंप पर सो गया लेकिन मच्छर इतने थे रात भर नींद नहीं आई सुबह 4:00 बजे गाड़ी और फिर मैं उनके साथ घर आया इस तरह साथ आना जाना होता था जब मेरी STC पूरी हो गई तो मैंने फैक्ट्री मालिक मनीष जी को कहा साहब मैं गांव जाऊंगा मेरा कॉलेज खत्म  हो गया उन्होंने कहा कि अब हमारी फैक्ट्री की निगरानी कौन करेगा मैंने कहा मुझे तो जाना पड़ेगा (क्योंकि आज मैं एक तरह से आजाद हो गया था घुटन भरे माहौल से)आप अपने हिसाब से निगरानी कीजिए ।।

काम करने वाले रूपा राम जी गोदारा, सत्ता राम जी बेनीवाल , पूनमारामजी ,अचलाराम जी सभी ने कहा कि आपने कोई शिकायत का मौका नहीं वरना सेठ जी हमें  बोलते हैं ।

मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी मैं गांव आ गया था उसके बाद मैंने ईमित्र का काम किया  उसके बाद रीट की तैयारी हेतु  बाड़मेर चला गया, 8 महीने  के बाद रीट का एग्जाम हो गया और परीक्षा का रिजल्ट आया उसके बाद  कट ऑफ आई और मैं शिक्षक बन गया ,मेरा परिवार ,पूरा गांव बहुत खुश हुआ।
उसके बाद  मैंने घरवालों को मोबाइल खोने की घटना की सच्चाई बताई पहले मैंने मोबाइल  बेच देने का झूठ बोला ।

 मेरे कॉलेज जीवन के कई सहपाठी मेरे संघर्ष के गवाह है मैं  साथियों को  टैग कर रहा हूँ ।

जो आप साइकिल का चित्र देख रहे हैं 11वीं में एडमिशन के बाद खरीदी थी 2 साल स्कूल में प्रतिदिन 22 किलोमीटर का सफर तय कर विद्यालय जाता था और उसके बाद कॉलेज के सफर में भी मैं अपने चाचा की गाड़ी में डालकर साइकिल जोधपुर ले गया था इसी को चलाकर  मैंने अपनी एसटीसी पूरी की।
मेरे कॉलेज के सहपाठी
Tr Om Prakash Choudhary

Prakash Choudhary

Mohit Bana Choudhary
Hanu Godara
Suru Bishnoi
Choudhary Parv
Manak Singh Bhati
Manoj Balach
Ashok Charan
ManRaj Meena
Vasu Meena आदि....

Thursday, 15 November 2018

बाबा, ज्योतिष क्या होती है?

बाबा, ज्योतिष क्या होती है?
त्रिभुवन
दीपावली पर एक प्रसिद्ध टीवी चैनल पर एक प्रसिद्ध एंकर के मुंह से वैदिक ज्योतिष शब्द सुनकर बेटे ने कहा, पापा- ज्योतिष तो सुना था, लेकिन ये वैदिक ज्योतिष क्या है?
बेटे के इस प्रश्न ने विश्रांति के पथ पर जा चुकी मेरी स्मृतियों को अशांत कर दिया। कभी बचपन में मैंने भी अपने पिता से ऐसा ही प्रश्न किया था। मैं प्रश्न बहुत करता था और पिता उत्तर देते थकते न थे। वे न कभी स्कूल गए थे और न किसी के पास बैठकर पढ़े थे। सब कुछ स्वाध्याय से ही सीखा था।
हम उस दिन शायद सुलेमान की हैड स्थित अपने गांव चक 25 एमएल से मांझूवास जा रहे थे और घोड़े पर थे। घर से निकले ही थे कि गांव की कांकड़ पर एक सज्जन मिले, जो हमारे नज़दीकी रिश्तेदार थे और ज्योतिषी के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने 'जय राम जी की' किया तो बाबा बोले : ठग महाशय की जय हो! कुटिल मुस्कान के साथ वे हँसे और पिता से कहने लगे कि इस काया के सबसे ऊपर दिमाग़ है, लेकिन चलने के लिए बनी दो टांगों से थोड़ा ऊपर एक पेट भी होता है! बाबा बोले : रोटी खाओ घी-शक्कर से, दुनिया ठगो मक्कर से! हे परमात्मा, तू कब निकालेगा इस देश को दकियानूसों के चक्कर से!!! हे प्रभु, तू इस धरती को इस ज्योतिष से कब मुक्त करोगे???
बाबा ने दुलदुल (हमारा घोड़ा) को सुलेमानकी की ओर से मोड़ा ही था कि मैंने प्रश्न दाग़ दिया : बाबा, ज्योतिष क्या होती है? पीली खिली सरसों के सुवासित खेतों में से छोटी चाल चल रहे घोड़े की लगाम को जरा हिलाया तो वह दुलकी में आ गया। बाबा बोले : देखो, ज्योतिष को वेदों का चक्षु माना गया है। चक्षु यानी आंख। और वे आंख के पर्यायवाची भी साथ-साथ मुझे याद करवाने लगे। इस बीच घोड़ा दुलकी से कदम चाल में आ गया। बाबा एक श्लोक पढ़ने लगे : शब्दशास्त्रं मुखं ज्यौतिषं चक्षुषी..देखो, शब्दशास्त्र वेद का मुख है। वेद यानी चार प्रमुख धर्मग्रंथ और वेद यानी ज्ञान भी। ज्योतिष नेत्र और निरुक्त कर्ण। श्रोत्र। कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और पांव छंद। देखो, जैसे दुलदुल के पांव कैसे लयबद्ध छंद की तरह उठ रहे हैं। यह भास्कर आचार्य का श्लोक है। इसे कंठस्थ कर लो। बोलो, शब्दशास्त्रं..। मैंने कहा, ज्योतिषं। तो वे बोले : वेदचक्षु: किलेदं स्मृतं...।
और दुलदुल बड़ी चाल से मध्यम गति में आ चुका था। सरसों के खेत मानो सोने के फूलों की चादर बिछी होने का एहसास करवा रहे थे। पिता बोले : देखो, पूरी दुनिया इतिहास पढ़ती थी और हमारे देश के मनीषी लोग भविष्यत् को बांचते थे। इतिहास हमारे के लिए निकृष्ट था। हमारे यहां व्यक्तिपूजा नहीं थी। ईश्वर सर्वव्यापक था। उसकी मूर्ति नहीं थी। हमारे यहां इतिहास इसलिए नहीं था, क्योंकि इतिहास व्यक्ति पूजा और व्यक्ति निंदा से जुड़ा होता है। विजेता इतिहास लिखता है। वह पराजित के सच को झूठ लिखता है। विजेता स्वयं को राम और पराजित को रावण साबित करता है। पराजित कुंठित होता है और वह विजेता के गेय गुणों को भी सहज स्वीकार्य नहीं कर पाता। तो हमारे यहां ज्योतिष पर काम हुआ। लेकिन ज्योतिष क्या है? यह कोई नहीं जानता। ज्योतिष मुहूर्त देखना, हस्तरेखाएं पढ़ना, राशियां देखकर भविष्यत् बताना नहीं है। ज्योतिष ज्योतिष है। यह टोना टोटका नहीं है। आप्त पुरुषों ने जिसे ज्योतिष बताया है, उसमें हस्तरेखा, जन्मपत्रिका, शरीरलक्षण, तिल, लग्न, प्रश्न, शकुन, विचार, ग्रह, नक्षत्र, राशियां और स्वप्न फल कतई नहीं हैं। इष्ट और अनिष्ट को जान लेने के दावे करना ज्योतिष नहीं है।
घोड़ा सजल घन की तरह गतिमान था और पिता कहते जा रहे थे : ज्योतिश्शास्त्रफलं पुराणगणकैरादेश इत्युच्यते। ज्योतिष यानी भविष्य में क्या-क्या होगा? राजनीति कैसी होगी? चीज़ें कैसी होंगी? जीवन कैसा होगा? वनस्पतियां कैसा रूप धारण करेंगी? हमने जो अतीत में किया, जो आज कर रहे हैं और इन दोनों के हिसाब से हमारा भविष्य कैसा होगा, इसे सही-सही जानना ज्योतिष है। इसे बहुत सधे ढंग से ज्ञान पर आधारित करके और नैसर्गिक विवेक से जानना वैदिक है। सिर्फ़ ऐसा नहीं कि किसी पुस्तक में लिख दिया और वही अंतिम या अनंतिम! लेकिन अब ज्योतिष शब्द आते ही ऐसा लगता है कि हस्तरेखा, अंगलक्षण, तिल, जन्मपत्रिका, मुहूर्त, वार, तिथि, घटी, पल, ग्रह, नक्षत्र, राशि, शकुन, प्रश्न, स्वप्न आदि के माध्यम से भविष्यत फल को जानना। वे बोले : ओह! हंत!! क्वास्ता: क्व पतिता:?! कहां फेंकना चाहते थे और कहां गिरा? क्या करना चाहते थे और क्या हुआ? कहां जाना चाहते थे और कहां पहुचे?
बाबा विज्ञान के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे। लेकिन उनका कहना था कि ज्योतिष का मतलब सृष्टि शास्त्र है। तारों, सितारों और उल्कापिंडों के बारे में वह सब जानना, जो मुनष्य की शक्तियों से परे है। वे बता रहे थे कि ज्योतिष काल गणना भी है और गणित के ज्ञान का आधार भी। कई बार ज्याेतिष से गणित सिद्ध होता है और कई बार गणित से ज्योतिष। हमारी प्राचीन शिक्षा में सूर्य सिद्धांत, चंद्रसिद्धांत जैसे कई ग्रंथ थे। समुद्र विज्ञान का अध्ययन होता था। वे बोले : यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा। तद्वेदावेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थतिम्। जैसे मयूरों के यानी मोरों के सिर पर शिखा और सर्प के सिर पर मणि होती है, उसी प्रकार वेदांग शास्त्रों में गणित शास्त्र सबसे ऊपर है। यह शिखा है। अब बताइए, कहां हस्तरेखा और कहां गणित का सच्चा विज्ञान। आचार्य भास्कर ने लिखा है : ते गोलाश्रयिणोअ्ंतरेण गणितं गोलोअ्पि न ज्ञायते। तस्माद्यो गणितं न वेत्ति स कथं गोलादिकं ज्ञास्यति। यानी स्पष्ट ग्रहों का ज्ञान गोल या गोले को जानने पर ही हो सकता है। उसके बिना नहीं। गणित के बिना गोल भी समझ में नहीं आता। इसलिए जो गणित को नहीं जानता, उसे गोलों का ज्ञान कैसे हो सकता है? वह ग्रहों को या नक्षत्रों को कैसे जान सकता है?
घाेड़ा अब सरपट दौड़ रहा था और पिता कह रहे थे कि देख हम घोड़े की पीठ पर सजी चांदी मंढ़ी जिस पिलानी या जीन पर बैठे हैं, वह झंग (पाकिस्तान का एक कस्बा, जहां अश्व सजावट का बेहतरीन सामान मिलता था) में बनी है। वे बता रहे थे कि झंग और मेेरे पैतृक गांव पंचकोसी की दूरी महज 125 से 130 मील थी और मैं यह पिलानी मेरे दोस्त हरदान सहू के साथ जाकर लाया था। बाबा ने एक दिलचस्प किस्सा सुनाया कि इधर हमारे यहां तो पंचांग देखकर लोग सब करते और ख़राब होते रहते, लेकिन उधर झंग में हमारे दोस्त अल्लारक्खा और इक़बाल खान बस अल्लाह को याद करके काम शुरू कर लेते। वे देश-विदेश हो आए और फर्श से अर्श पर पहुंच गए और हमारे यहां ज्योतिषियों ने समुद्र यात्रा काे अधर्म घोषित कर दिया और हम अर्श से फर्श पर पहुंच गए। उन्होंने एक दोहा याद करवाया : सूर नंह पूछै टीपणो, सुकन नंह देखै सूर। मरणां नूं मंगळ गिणै, समर चढै मुख नूर। ये हमारे यहां का लोकविवेक था। लोकनीति थी। लेकिन ज्योतिषियों ने तबाह कर दिया।
वे बोले : झंग चनाब के किनारे बसा शहर है। वहां हीर-रांझा की कब्र है। रास्ते में साहीवाला आता है। हम झंग गए तो घोड़ों पर ही फाज़िल्का, वज़ीरपुर, ओकाड़ा, समुदंरी होते हुए और लौटे तो पीरपंजाल, साहीवाल और पाकपट्‌टन होकर। लेकिन तुम सोचो कि अगर भारत में फलित ज्योतिष के चक्कर में न पड़े होते तो इन इलाकों पर विदेशी आक्रमणकारी कभी भी अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाते।
ऐसा नहीं कि ज्योतिष के जाल में हमीं थे। मुसलमान भी नजूमियों के चक्कर में रहे। वे जब तक इस जाल से बाहर थे, ताकतवर थे, लेकिन जब से इस जाल में आए, हम से बदतर हो गए। एक कथा है कि मुहम्मद साहब ने चांद के टुकड़े कर दिए थे। यह ऐसा ही है जैसे हनुमान ने सूर्य को निगल लिया।
ज्योतिषी जाल फैलाने वाले लाल बुझक्कड़ों ने विज्ञान और खगोल विद्या को भुुलाकर तरह-तरह की बातें फैलाईं। एक तो कहा कि अगस्त्य मुनि ने सात समुद्रों को एक साथ पी लिया था। अरे भाई अगस्त्य एक तरह का बड़ा सूर्य है। दरअसल अगस्त्य एक नक्षत्र है। बाबा ने रात को लौटते हुए अगस्त्य की स्थिति बताई। मृगशिरा आैर व्याध की स्थितियों को बताते हुए अगस्त्य को दिखाया। वे बोले, देखो, सूर्य के मृगशिरा नक्षत्र में आते ही अगस्त्य तिरोहित हो जाता है। दरअसल वर्षा काल का जब समाप्त होता है तो अगस्त्य नक्षत्र या सितारा दिखने लगता है। यानी इस समय वर्षाकाल समाप्त हो जाता है। इससे लोक की आलंकारिक भाषा में यह कहावत बनी कि अगस्त्य ने सातों समुद्रों (वर्षा) का पान कर लिया है।
ज्योतिष का सच्चा अर्थ नहीं जानने के कारण ही भ्रांतियां फैलीं। हैरानी तो तब होती है जब सुशिक्षित लोग और विज्ञान पढ़े हुए लोग इस तरह के जाल के चक्कर में पड़ते हैं। बाबा समझाने लगे, ज्योतिष का विज्ञान स्वरूप तो विद्या है, लेकिन ज्योतिष का फलित स्वरूप अविद्या है।
बाबा बोले, भविष्य को जानने के एक अदभुत शास्त्र ज्योतिष को मूढ़ लोगाें ने जो बना दिया है, और उस पर जिस तरह हमारे सुशिक्षित लोग विश्वास और आस्था रख रहे हैं, उसे देखते हुए मुझे खतरा है कि ऐसे लोगों के हाथ कभी शासन सत्ता लग गई तो हमारे यहां वैज्ञानिकों और विवेकवानाें का वही हाल होगा, जो कभी ब्रूनो और गेलीलियो का हुआ था। मूढ़ता और अविद्या मनुष्य को एेसी मनोस्थिति में ला देता है कि अगर उनकी अविद्या और मूर्खतापूर्ण बातें सिद्ध न हों तो वे धर्मग्रंथों और विज्ञान ग्रंथों का अर्थ तक बदलने लगते हैं।
बाबा ने बहुत समझाया, लेकिन मैंने कहा, लेकिन ज्योतिष है क्या, मुझे तो समझ नहीं आया। यह सच है या झूठ?
वे बोले : हम्मममम ज्योतिष। देखो 'द्युत दीप्तौ' धातु से द्युतेरिसिन्नादेश्च ज: इस औणादिक सूत्र से इसिन् प्रत्यय तथा द को ज का आदेश होकर ज्योतिष शब्द निष्पन्न होता है। ज्योतींष्यधिकृत्य कृतो ग्रंथ: शास्त्रं वा ज्यौतिषं शास्त्रम्। दीप्ति या दीप्तिमान पदार्थ ज्योति: कहलाता है। ब्रह्मांड या विश्व में समस्त पिंड ज्योतियां हैं और जो ज्योतियों के विषय में शास्त्र या विज्ञान है, वह ज्योतिष कहलाता है। भूगोल, खगोल, भूगर्भ, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे जितने भी विषय हैं, वे सबके सब ज्योतिष शास्त्र के प्रखंड हैं। यानी जातक, मुहूर्त, राशि, ग्रह, नक्षत्र, वास्तु, जप, कुंडली, संहिता, होरा जप, पूजा, आदि जो फल विधान हैं, वे सबके सब झूठे हैं और जो विज्ञान सिद्ध स्वरूप सिद्ध विज्ञान है, वह ज्योतिष है। वराहमिहिर, भास्कर आचार्य और आर्यभट्‌ट पुराने वैज्ञानिक हैं, लेकिन गौरीजातक, कालजातक, पाराशरी, भृगुसंहिता, वृहत्संहिता, मुहूर्तचिंतामणि जैसे ग्रंथों के रचयिता विज्ञान विरोधी थे।
रात बहुत हो गई थी। लौटते हुए हम एक दूसरे रास्ते से आए। गंगनहर में जलधारा का कलरव ऊंचा होता जा रहा था और घनी रात में घोड़े के पसीने की तीव्र गंध बदन को पुलकित कर रही थी। गांव के पास आकर नहर से उतरते हुए दुलदुल अचानक हिनहिनाया और वातावरण में एक गंभीर गर्जना उमड़ उठी।
ऐसा लगा, वह दिन ज्योतिष को जानने नहीं, पर्वतों के शिखर का चुंबन लेकर लौटने का था। इस आधुनिक कालखंड में लगता है कि हमारा विवेकवान अतीत आज हमारे संकीर्ण और अवैज्ञानिक वर्तमान की तुलना में कितना प्रदीप्त था। à¤¸à¤‚बंधित इमेज

आरएसएस का कार्यकर्ता बम बना रहा था , केरल की घटना बम फटा

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Wednesday, 7 November 2018

सिद्ध करो राम थे............. या स्वीकार करो कि रामायण काल्पनिक ग्रंथ है...

सिद्ध करो राम थे............. या स्वीकार करो कि रामायण काल्पनिक ग्रंथ है...
(1). एक समय पर दो तरह के इंसान कैसे हो सकते हैं?
एक पूंछ वाला और एक बिना पूंछ वाला...
दोनों मनुष्य की तरह बोलते हैं दोनों के पिता राजा हैं क्या ऐसा संभव है??
(2). मेंढक से मंदोदरी कैसे बन सकती हैं/ पैदा हो सकती है??
(3). लंगोटी का दाग छुड़ाने से अंगद कैसे पैदा हो सकता है??
पक्षी मनुष्य की तरह कैसे काम कर सकता है जैसे गिद्धराज??
(4). किसी मनुष्य के 10 सिर हो ही नहीं सकते इतिहास या पुरातत्व द्वारा आज तक ये सिद्ध नहीं हो पाया कि किसी इंसान के 10 सिर 20 भुजाओं वाला कोई मनुष्य नहीं है.......
(5). जिस लंका की आप बात कर रहे हो,उसका नाम भी 1972 में लंका पड़ा। इसके पहले सिलोन व सीलोन से पहले सिहाली इत्यादि नाम थे तो असली लंका कहा है???

Sunday, 4 November 2018

⚜️ जन्मपत्री तथा भविष्वाणियाँ ⚜️

☀️ कहते हैं कि पंजाब में एक झल्लन नाम का जाट था । उसका पुत्र रोग्रस्त हो गया । उसके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि अब डॉक्टरों को कौन बुलाता फिरेगा ! डॉक्टरों की फीस तथा ओषधियों का मूल्य मैं सहन नहीं कर सकूंगा । ये जो गंडे - तावीज़ करने वाले स्याने होते हैं , उनके पास चलो , उनसे कोई गंडा - तावीज ले आवेंगे और लड़के को आराम हो जायेगा । यह सोचकर झल्लन स्याने के मुहल्ले में गया तो क्या देखता है कि उस तावीज़ देने वाले के अपने ही घर में रोना - पीटना पड़ रहा है । झल्लन ने पूछा कि क्या बात है ? लोगों ने बताया कि स्याने का 25 वर्षीय युवक पुत्र कल ही चल बसा । यह सुनते ही झल्लन कुछ पूंछे बिना ही वहाँ से अपने घर को लौट आया ।

ज्योतिषी के घर में शोक — चार - छह मास के पश्चात् झल्लन की पुत्री का शुभ विवाह होने वाला था । झल्लन ने सोचा - चलो पांधाजी से विवाह का मुहूर्त पूछ आवें । यह सोचकर झल्लन पांधाजी के घर पहुँच गया । संयोग ऐसा हुआ कि पांधाजी के घर में भी रोना - धोना मचा हुआ था । झल्लन ने पूछा कि क्या बात है ? लोगों ने बताया कि पांधाजी की एक सोलह - वर्षीय पुत्री विधवा हो गई है । उसके विवाह को अभी केवल छ : मास ही हुए थे । यह सुनकर झल्लन वहाँ से भी वापस आ गया । उसने पंजाबी में एक दोहा बोला

⚜️वैद्या दे घर पिट्टनाँ , पांध्याँ दे घर रण्ड ।
⚜️चल झल्लन घर अपने , साहा धरो नि : संग ।

अर्थात् स्यानों के घर में भी शोकाकुल लोग रो - धो रहे हैं और मुहूर्त निकालने वालों के अपने घर में पुत्री रांड ( विधवा ) हो बैठी है । चल रे झल्लन , अपने घर चल और नि : शड्डू होकर ' साहा ' ( विवाह की तिथि ) निश्चित कर दे ।

उसने सोचा — जब पांधा को अपनी पुत्री के ही विधवा होने का पता नहीं लगा तो मेरे सम्बन्ध में वह क्या बता सकेगा ? यह बात ठीक है भाई , इन बातों का किसी को भी पता नहीं लगता । ' भोज प्रबंध ' में लिखा भी है कि , ' घोड़े का कूदना , मेघों की गर्जन, स्त्रियों के मन की बात , मनुष्य का भाग्य , वर्षा का न होना अथवा अतिवृष्टि , इन सब बातों को देवजन भी नहीं जान सकते , मनुष्य का तो सामथ्र्य ही क्या है ।

☀️सबसे बड़े ज्योतिषी का भ्रम टूटा — काशी - निवासी पं० सुधाकर द्विवेदी काशी के सबसे बड़े ज्योतिषी माने जाते थे । उन्होंने संस्कृत व ज्योतिष के सैकड़ों ग्रन्थों की टीकाएँ लिखी हैं । वह बनारस के राजकीय संस्कृत कॉलेज में ज्योतिष - विभाग के अध्यक्ष थे । उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया । उन्होंने उसकी जन्मकुण्डली बनावाई और उसके जन्म का ठीक - ठीक समय जानकर अपने मित्रों व शिष्यों को भेज दिया । सबने उस कन्या की जन्मकुण्डली बनाकर भेजी और लिखा कि कन्या का सौभाग्य अटल होगा । पण्डित सुधाकर जी को स्वयं भी गणित से ऐसा ही ज्ञात हुआ । परन्तु वह कन्या विवाह के छह मास के पश्चात् ही विधवा हो गई । इस पर पण्डितजी का फलित ज्योतिष पर विश्वास सदा - सदा के लिए डोल गया और उन्होंने काशी के टाउन हॉल में फलित ज्योतिष के खण्डन में व्याख्यान दिया तथा सब ज्योतिषियों को चुनौती दी कि आओ , फलित ज्योतिष पर शास्त्रार्थ करो ! परन्तु कोई भी ज्योतिषी उनके सामने न आया । उन्होंने श्री जनार्दन जोशी डिप्टी कलैक्टर को एक पत्र में लिखा है — ' मेरा फलित ज्योतिष में विश्वास नहीं है । मैं इसको एक प्रकार का खेल समझता हूँ । ये ज्योतिषी लोग अपने झूठे बकवास से लोगों का धन व्यर्थ में ही लूटते हैं । '

☀️ ऋषि दयानन्द के बारे में कहा था — ' श्री स्वामी दयानन्द जी महाराज के सम्बन्ध में ज्योतिषी ने उनके पिताजी को बतलाया कि इस बालक के दो विवाह होंगे परन्तु स्वामी जी तो संन्यासी बन गए और बाल ब्रह्मचारी रहे । स्वामी वेदानन्द जी ने बतलाया कि हम दो व्यक्तियों को जानते हैं जिनका जन्म एक ही ग्राम में , एक ही मुहल्ला व एक ही समय में हुआ । उनका नाम भी एक ही रखा गया , परन्तु एक रलाराम तो पाँच सहस्र रूपये मासिक पाते रहे , मन्त्री भी बने , और दूसरा रलाराम आजीवन साठ रुपये मासिक से अधिक न पा सका । अत : किसी की उन्नति व पतन का आधार जन्म का समय नहीं , प्रत्युत पूर्व - जन्म के कर्म एवं पुरुषार्थ ही हैं।

☀️ ज्योतिषी की पुत्री का अपहरण हो गया - गत दिनों समाचारपत्रों में एक घटना प्रकाशित हुई कि एक बहुत बड़े ज्योतिषी की पुत्री का एक स्कूल मास्टर ने अपहरण कर लिया है । चौदह दिन तक उस ज्योतिषी ने किसी को पता तक नहीं दिया । चौदह दिनों तक वह लोगों को यह बतलाता रहा कि लड़की मामा के घर मिलने के लिए गई है ।

चौदह दिन के पश्चात् आर्यसमाज के प्रधान को पता चला तो वह दो - चार सज्जनों के साथ लेकर ज्योतिषी के घर पर गए और वास्तविक स्थिति को जानकर कहा , “ चलो थानामें चलकर रिपोर्ट तो लिखवाएँ ।

” ज्योतिषी जी ने कहा , " अब लड़की तो मेरे काम की रही नहीं , मैं उसको घर पर तो रख नहीं सकता । '

इस पर प्रधान आर्यसमाज ने कहा , ' वह आपकी ही पुत्री नहीं , प्रत्युत हमारी भी है । हम उसको अपने पास रखेंगे । ”

अन्तत : थाना में रिपोर्ट लिखवाई गई । थाना से पुलिस को साथ लेकर मन्त्री आर्यसमाज कोयटा गया और वहाँ से बहावलपुर राज्य में जाकर लड़की को खोज निकाला । चार - पाँच सहस्र रुपये लगाकर और पाँच मास तक घोर परिश्रम करके उस लड़की का विवाह किया गया । ज्योतिषी जी को जन्मपत्री से इन सब बातों का ज्ञान न हो सका कि लडकी का अपहरण होगा । कहने का तात्पर्य यह है कि ज्योतिषियों को स्वयं अपने बारे में ही विपत्तियों का पता नहीं लग सकता , दूसरों को तो वे कक्या बतलावेंगे । इस सम्बन्ध में एक और उदाहरण है -

☀️जाट के घर पर ज्योतिषी — कहते हैं कि एक जाट खेत में गया हुआ था । उसकी धर्मपत्नी घर पर ही थी । ज्योतिषी जी घर पर उसकी स्त्री के पास आया और उसका हाथ देखकर बतलाया कि तुम्हारे ऊपर तो ढाई वर्ष के लिए कठिन समय है । यह सुनकर उस जाटनी के तो होश ही उड़ गए । इतने में ही जाट भी अपने खेत का कार्य निपटाकर घर पर आ गया । जाटनी ने जाट को देखकर कहा कि ' देखो , हमारे ऊपर तो ढाई वर्ष के लिए बहुत विपत्ति है । यह पण्डित जी ने बतलाया है ।

” जाट ने पण्डित जी से पूछा , ' यह विपत्ति किसी प्रकार से टल भी सकती है क्या ? ”

ज्योतिषी जी ने कहा , ' हाँ , गेहूँ वा घृत आदि के दान से विपदा दूर की जा सकती है '

यह सुनकर जाट ने जाटनी से कहा , ' भीतर से एक मन गेहूँपण्डित जी को लाकर दान कर दो । यह बला तो दूर करनी ही पड़ेगी । "

यह सुनकर जाटनी तो गेहूँ लेने भीतर चली गई । जाट ने भी अन्दर से घर का कुण्डा लगा दिया और एक छोटा - सा दण्डा लेकर ज्योतिषी जी की पिटाई आरम्भ कर दी और सिर से लेकर पाँव तक उसकी खूब पिटाई - कुटाई कर दी । तब ज्योतिषी जी ने करबद्ध विनती करके चौधरी से कहा , “ अब की बार मेरी जान छोड़ दो । मैं भविष्य में कभी ऐसा काम नहीं करूंगा । '

इस पर जाट ने कहा कि ' पण्डित जी , मैं आपको छोड़ तो दूंगा , परन्तु एक बात बतलाएँ कि आपको हमारी तो ढाई वर्ष की विपत्ति का पूर्व से ही ज्ञान हो गया , परन्तु आपको अपनी विपदा का ढाई मिनट पहले भी पता नहीं लगा कि अभी कुण्डी बन्द करके आपकी पिटाई होगी ! '

☀️जब बिहार म भूकम्प आया - जब बिहार म भूकम्प आया तो सैकड़ो जाने गई और लाखों रुपये की सम्पदा नष्ट हो गई । कोई भी ज्योतिषी एक मिनट पहले तक नहीं बतला सका कि भूकम्प आएगा । परन्तु जब भूकम्प आ चुका तो एक ज्योतिषी ने समाचारपत्रों में भविष्यवाणी प्रकाशित करवा दी कि 28 फरवरी की रात्रि पुन : वैसा ही भूकम्प आएगा । शरद् ऋतु थी , कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी , लोग अपने - अपने बिस्तर उठाए हुए भागे - भागे फिरे । न कुछ आया , न गया ।

☀️कोयटा में भगदड़ कैसे - अब देख लो , यह कोयटा का भूकम्प जिसमें पचास सहस्र जन समाप्त हो गए और करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई , परन्तु कोई ज्योतिषी एक मिनट पूर्व तक नहीं बतला सका कि भूकम्प आने वाला है । परन्तु जब आ चुका तो अमृतसर में एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी कि आज रात को तीन बजे वैसा ही भूकम्प आएगा । गर्मियों के दिन थे । लोग मकानों की छतों पर सोए हुए थे । एक गृहस्थी के घर में चूहों ने रसोई के पात्रों में खटखट कर दी । उसको तो पूर्व से भूकम्प का संस्कार था । भूकम्प - भूकम्प ' कहकर शोर मचा दिया । सारे मुहल्ले में भगदड़ मच गई और देखते - ही - देखते नगर भर में भागा - दौड़ी पड़ गई । न कुछ आया , न गया ।

☀️टर्की के भूकम्प के समय - अभी थोड़े दिन हुए टकी में भूकम्प आया जिसमें तीस सहस्र व्यक्ति मारे गए और करोड़ों की सम्पदा का विनाश हो गया । परन्तु यूरोप का एक भी ज्योतिषी एक मिनट पहले तक नहीं बतला सकता कि भूकम्प आवेगा । परन्तु लाहौर के ज्योतिषियों ने समाचारपत्रों में प्रकाशित करवा दिया कि कश्मीर में भूकम्प आएगा।श्रीनगर के लोग रात को शीत में मैदानों में पड़े रहे । न कुछ आया न गया ।

☀️प्रथम विश्वयुद्ध के समय — आज से पचीस वर्ष पूर्व जब कि अंग्रेजों का जर्मनी से युद्ध छिड़ा हुआ था , उस समय टर्की जर्मनी के साथ था । मैंने स्वयं उस समय मुसलमानों को यह कहते हुए अपने कानों से सुना था कि हमारी हदीसों में लिखा है कि अमुक तिथि को टकी का शासक जामा मस्जिद में आकर नमाज पढ़ेगा । और यह हमारेवाले भी भागवत का पोथा बगल में लिये फिरते थे कि बस इतना ही टोपी - राज रहना था . अब इनकी टोपी समाप्त होने वाली है । यदि शासन इन बातों को सुनकर हाथ - पाँव ढीले कर देता तो टर्की का शासक भी जामा मस्जिद में आकर नमाज पढ़ लेता और उनकी टोपी भी समाप्त हो जाती । परन्तु शासक तो जानता था कि ये सब अंधविश्वास की बातें हैं । ये बातें कभी व्यवहार में आने वाली नहीं हैं । सरकार पूर्ववत् अपने पुरुषार्थ में लगी रही । परिणाम यह निकला कि उनकी हदीसें धरी - धराई रह गई और इनका भागवत का पोथा धरा - धराया रह गया । अंग्रेजी राज्य पूर्ववत् भारत में दनदनाता रहा ।

☀️सेठों को दीवालिया कर दिया — इन ज्योतिषियों ने सैकड़ों सेठों का तो दीवाला ही निकलवा दिया । जब ये ज्योतिषी लोग बाजार में जाते तो दुकानदार लोग इनके पीछे लग जाते — ' महाराज ! गेहूँ का भाव घटेगा या चढ़ेगा ? सोना मन्दा होगा अथवा तेज़ ? ' दस को मन्दा बता देंगे और दस को कहेंगे — भाव चढ़ेंगे । कोई मरे कोई जिये , सुथरा घोल बताशे पिये । ' यदि भाव चढ़े तो दस मंहगे वालों को लूट लिया , यदि सस्ता हो गया तो दस मन्देवालों को लूट लिया । इस ठग्गी का संसार में कहीं भी अन्त नहीं है ।
कोई कुशल व्यापारी कहे तो — यदि कोई व्यापार में सुदक्ष व्यक्ति किसी वस्तु की उपज व खपत का अनुमान लगाकर कोई बात बतलावे , तो सम्भव है कि उसका कथन कुछ सीमा तक सत्य सिद्ध हो , परन्तु जिन लोगों का व्यापार से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है , उन लोगों से व्यापार के सम्बन्ध में परामर्श लेना स्वयं को डुबोने वाली बात नहीं तो क्या है ? यदि इन लोगों को मन्दे व तेजी का पता लग जाता तो ये लोग स्वयं ही सौदे करके करोड़पति क्यों न बन जाते ? परन्तु ये तो दूसरों को ही करोड़पति बनाते फिरते हैं । स्वयं तो दो - दो पैसे के लिए लोगों की दुकानों के चक्कर काटते हुए जूते घिसते रहते हैं ।

☀️लायलपुर में बाबू बर्बाद हो गए — महाशय केसरचन्द जी भजनोपदेशक आर्य प्रतिनिधि सभा ने बताया कि लायलपुर में एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि यह तोरिया जिसका तेल निकलता है , यह नौ रुपये मन हो जावेगा । उस समय तोरिया का भाव साढ़े चार रुपये मन था । बाबू लोगों ने जो सर्विस में थे , बैंकों व डाकघरों से अपनी - अपनी पूंजी निकलवाकर यथाशक्ति सहस्रों रुपये का तोरिया खरीद लिया । परन्तु तोरिया का भाव गिरकर ढाई रुपये मन हो गया । सर्विस करनेवाले अनेक बाबू इस धंधे में बर्बाद हो गए । इनमें से कुछ एक मिलकर ज्योतिषी जी के पास गए और पूछा कि आपके ज्योतिष को क्या हुआ ? वह बड़ी सरलता से बोले , ' मेरी गणना में एक बिन्दु का अंतर रह गया जो मुझे दिखाई न दिया । ” अब ज्योतिषी को तो केवल एक बिन्दु का पता न चला , परन्तु उसकी भूल से लोगों के सहस्रों डूब गए ।

☀️ज्योतिषी कैसे ठगते हैं — एक ज्योतिषी गलियों में जाता है तो ये हमारी माताएँ झट उसके आगे हाथ कर देती हैं कि देखना बाबा , मेरे क्या होगा ? अब यदि बाब कहे कि तुम्हारे कुछ नहीं होगा तो बाबे को क्या मिले ? बाबा कहता है कि ' माई जी , लड़का होगा लड़का ! ” माई बहुत प्रसन्न होती है और कुछ - न - कुछ राशि नौ मास पूर्व ही अग्रिम दे देती है । फिर वह पड़ोसन के पास जाकर कहता है कि ' होगी तो उसके यहाँ कन्या परन्तु मैंने उसका मन प्रसन्न करने के लिए पुत्र कह दिया है । ” इतना कहकर ज्योतिषी जी तो चलते बने । अब आए एक वर्ष के पश्चात् । आप जानते ही हैं कि कोई ऊँट - घोड़ा तो होने से रहा ! या लड़का होगा या लड़की होगी ! यदि लड़का हुआ तो उसके पास पहुँचे कि देखा , हमने कहा था कि पुत्र का जन्म होगा ! अब लाओ कुछ भेंट - पूजा ! यदि कन्या का जन्म हुआ तो उसके पास न जाकर पड़ोसन के पास पहुँचे कि हमने कहा था कि उसके कन्या होगी , हमने उसका मन प्रसन्न करने के लिए लड़का कह दिया था । अब लाओ कुछ भेंट - पूजा ! यदि पुत्र हुआ तो उसको लूटा , यदि लड़की हुई तो दूसरे को लूटा ! इस ठग्गी का जगत् में कोई अन्त ही नहीं ।

☀️माँ - बेटा दोनों ज्योतिषी - जिन दिनों हम स्कूलों में पढ़ा करते थे , उन दिनों हमने एक चुटकुला पढ़ा था । एक बालक ने कहा कि मैं बड़ा ज्योतिषी हूँ और मेरी माँ मेरे से भी बढ़कर ज्योतिषन है । लोगों ने पूछा कैसे ? उसने कहा जब मेघ आते हैं तो मैं कहता हूँ वर्षा होगी , और मेरी माँ कहती है कि नहीं वर्षगे । तो या तो वह होता है जो मैं कहता हूँ , या वो होता है जो मेरी माँ कहती है । इस प्रकार का ज्योतिषी तो प्रत्येक व्यक्ति बन सकता है । ये हाथ में जो रेखाएँ होती हैं , ये तो हाथों में जोड़ों के निशान हैं । जो लोग हाथों से श्रम करते हैं उनके हाथों पर ये रेखाएँ कम होती हैं , और जो लोग हाथों से थोड़ा काम करते हैं उनके हाथों में रेखाएँ अधिक होती हैं । इन हाथों में कहीं पर भी धन , सम्पदा , आयु , सन्तान , विवाह आदि लिखा हुआ नहीं होता ।

☀️ हाथ में क्या लिखा है ? — कहते हैं कि एक आर्योंपदेशक एक ग्राम में प्रचार करने के लिए गया । जब वह एक सज्जन के घर भोजन करने गया तो एक माता ने उसके आगे अपना हाथ करते हुए कहा , ' देखना पण्डित जी ! मेरे हाथ में क्या है ? ” पण्डित जी ने सहज रीति से कहा , ' माताजी ! तुम्हारे हाथ में मुझको तो हड्डियाँ , लहू व चर्म दिखाई दे रहा है । ” माता ने कहा कि ' पण्डित जी ! मैं यह बात नहीं पूछा रही । मैं तो यह पूछ रही हूँ कि मेरे इस हाथ में पुत्र कितने लिखे हैं और पुत्रियाँ कितनी लिखी हैं ? इनमें से कितनों का जीवन लिखा है और कितनों का मरण लिखा है ? — इस पर पण्डित जी ने उत्तर दिया , “ माताजी ! यह हाथ है , नगरपालिका का कार्यालय नहीं है । ”

☀️मौत का समय बताकर - ये ज्योतिषी लोग कितने ही व्यक्तियों की मृत्यु के बारे में भविष्यवाणी करके उनको झंझट में फंसा देते हैं और बहुत - से लोग तो ज्योतिषियों की बातों करके स्वयं जनता के उपहास का कारण बन जाते हैं । उदाहरण के लिए परविश्वास अभी ' दैनिक प्रताप ' लाहौर के 25 अप्रैल सन् 1940 के पृष्ठ 18 पर कालम तीन में एक रोचक समाचार छपा है ।

“ ज्योतिष में अंधविश्वास की सीमा तक आस्था ने एक व्यक्ति को किस प्रकार समय से पूर्व मृत्यु - शय्या पर लिटा दिया , इस प्रकार की घटना अभी इन दिनों शेखूपुरा में घटी है । लाला दीवानचन्द मल्होत्रा , जो रिटायर्ड सरकारी अधिकारी हैं और रावलपिण्डी के हैल्थ आफीसर डॉ० हरबंसलाल के पिता हैं , ज्योतिष में बहुत विश्वास रखते हैं । उनकी आयु इस समय लगभग साठ वर्ष है । एक ज्योतिषी ने लालाजी को बताया कि वह अमुक दिन अमुक समय स्वर्गवासी हो जाएँगे । इस पर लालाजी ने अपने सब प्रेमियों , मित्रों व सम्बन्धियों को सूचित कर दिया । दान - पुण्य जो करना था , करके , मृत्यु की बाट देखने लगे । चारपाई छोड़कर धरती पर लेट गए । आप एक सप्ताह तक मृत्यु की प्रतीक्षा में रहे । चिन्ता से भार घटकर आधा रह गया । ज्योतिषी द्वारा बताई गई मौत की घड़ी निकल गई । मौत नहीं आई , नहीं आई । लालाजी ने अपने सब मित्रों सगे - सम्बन्धियों को क्षमा - याचना व धन्यवाद के पश्चात् लौट जाने को कहा । यह घटना सारे नगर की रुचि व मनोरंजन का विषय बनी हुई है । ”

☀️वह हरिद्वार मरने गया - एक सज्जन की ज्योतिषी ने जन्मपत्री बनाई और उसमें लालाजी की आयु 47 वर्ष की लिखी थी । जब लालाजी की आयु 46 वर्ष बीत गई तो 47वें वर्ष आप अपनी आयु समाप्त करने के लिए हरिद्वार जा रहे थे तो मार्ग में पं० जनार्दन जोशीजी डिप्टी कलैक्टर अल्मोड़ा भी उसी डिब्बे में सवार हुए । लालाजी से वार्तालाप होने पर उनका प्रयोजन सुनकर पण्डित जी बहुत हँसे और उन्हें समझाने लगे कि ' परमात्मा के सिवा यह किसी को भी पता नहीं कि किसकी कितनी आयु है । फलित ज्योतिष केवल लोगों को ठगने का बहाना है । मैं भी ज्योतिष जानता हूँ और मुझे इस पर कतई विश्वास नहीं है । ” पण्डित जी की बात लाला जी की समझ में आ गई और वह हरिद्वार से स्नान करके गुरदासपुर लौट आए । अब उनकी आयु 63 वर्ष है और स्वस्थ - नीरोग जीते - जागते विच रहे हैं ।

☀️ और वह न मरे — पं० नन्दलाल जी चौधरी बटाला आर्यसमाज में रहते हैं । उनकी जन्मपत्री ज्योतिषी ने बनाई और आयु 70 वर्ष लिखी है । इस समय पण्डित जी की आयु 80 वर्ष है और वह जीते - जागते स्वस्थ दिन बिता रहे हैं । यह बात उन्होंने स्वयं मुझे बताई ।

☀️ एक महात्मा मरने बैठे तो - रावलपिण्डी में एक चरायतेवाले सिख महात्मा प्रसिद्ध हैं जो कि सब तीर्थों को चरायते का जल पिलाते हैं । गत दिनों तक ज्योतिषी ने उन्हें बतलाया कि आपका निधन आज से साठ दिन के पश्चात् हो जाएगा । महात्मा जी इस बात को सुनकर गुरुद्वारे में बैठ गए और अपनी मृत्यु का विज्ञापन देकर घोषणा कर दी । स्त्रियाँ , पुरुष व बालक सब दर्शनार्थ आने लगे । पर्याप्त भेंट - पुजापा चढ़ने लगा । सहस्रों रुपये चढ़ावा पाकर बाबाजी ने एक सौ रुपये बाजेवालों को , पचास रुपए मोटरवालों को और पचास रुपये फूलोंवालों को दिए और कहा कि मृत्यु के पश्चात् मेरी शव - यात्रा निकालकर पंजा साहेब होते हुए मुझे अटक नदी में प्रवाहित कर देना । जब पंद्रह दिन शेष रह गए तो पुलिस को भी पता लगा और उसने महात्मा जी पर पहरा लगा दिया और एक डॉक्टर भी विधिवत् आकर बैठ गया । जब नियत समय समाप्त होने में दो घण्टे शेष रह गए तो एक मोटर को फूलों से सजाकर उसमें महात्मा जी को बिठाया गया और बाजा बजने लगा । निश्चित समय पर महात्मा जी ने मरने वालों के समान धुड़धुड़ियाँ भी लीं । परन्तु जब नियत समय पर वह न मरे , तो लोगों ने महात्मा जी पर ईट - पत्थर की वर्षा आरम्भ कर दी और उच्च स्वरों में कहा , “ अब आप मरते क्यों नहीं ? लोगों का इतना रुपया ठग लिया । ” पुलिस ने बहुत कठिनाई से लोगों से महात्मा जी की जान बचाई । मोटर को दौड़ाकर थाना में ले गए । जब पुलिस ने वास्तविकता की जाँच - पड़ताल की तो महात्मा जी ने बलाया कि मुझे तो यह बात ज्योतिषी ने बतलाई थी । इस घटना ने एक मास तक लोगों को आश्चर्य में डाले रखा ।

☀️ लतालेवाले महात्मा बिशनदास — श्री पं० बिशनदास जी लतालेवालों को ज्योतिषयों ने बतलाया था कि आपकी आयु 69 वर्ष है , परन्तु आप 47 वर्ष की आयु में परलोक सिधारे ।

लाला सालिगराम जी जाखल मण्डी हरियाणा को पं० नन्दकिशोर मेरठ के भूगुसंहितावाले ज्योतिषी जी ने यह बतलाया था कि तुम विक्रम सम्वत् 1982 में स्वर्गवासी हो जाओगे । परन्तु वह आज - पर्यन्त ( सम्वत् 1997 में भी ) ठीक - ठाक जीवित हैं ।

☀️ भृगुसंहितावालों की गप्प - महाशय हंसराज जी आर्य , मन्त्री आर्यसमाज जाखल को इन्हीं पं० नन्दकिशोर जी भृगुसंहितावालों के सुपुत्र ने सुनाम के निकट गुजरॉ ग्राम में बतलाया था कि तुम्हारे तीन पुत्र होंगे और तीनों जीवित रहेंगे । परन्तु अब तक दो पुत्रों का जन्म हुआ है और दोनों ही मर गए हैं , वे भी ज्योतिषी जी के बतलाने से पहले ही । यह बात ग्यारह वर्ष पूर्व गुजरॉ में ज्योतिषी जी ने महाशय जी को भी बताई थी ।

☀️ ज्योतिषी का पुत्र गुरु - पिण्ड दादन खाँ के ज्योतिषी पं० अमरचन्द का पुत्र पाँच वर्ष से गुम है , परन्तु वह अब तक अपने पुत्र का पता नहीं लगा सके ।

☀️ जन्म का समय व भोग - ये ज्योतिषी लोग जो जन्मपत्री बनाते हैं , यह उस समय को ध्यान में रखकर बनाई जाती है कि जिस समय में किसी मनुष्य का जन्म होता है , और लोगों को आगे चलकर जो दु : ख व सुख प्राप्त होने हैं , वे बतलाते हैं । वे प्रत्येक व्यक्ति के नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार उसके वर्ग व राशि को निकालकर उस राशि का सुख व दु : ख बतलाते है ।

☀️ एक क्षण में अनेक का जन्म — अब यह बात विचारणीय है कि संसार में जिस क्षण एक राजा के घर पुत्र का जन्म होता है , उसी क्षण एक रंक के घर भी एक बालक का जन्म होता है । भाव यह है कि उसी एक क्षण में इस सृष्टि में अनेक जीवन विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं । यदि जन्म का समय ही किसी जीव के सुखी - दु : खी होने का कारण है तो ऐसे सब बच्चों का भाग्य एक समान होना चाहिए , परन्तु संसार में हमें ऐसा दिखाई नहीं देता ।

☀️ राशि से भोग का शुद्ध भ्रम - यदि संसार में किसी के नांम के प्रथम अक्षर से ही उसके भविष्य के सुख - दु : ख का पता चल सकता है तो क्या जिन मनुष्यों के नाम के प्रथम अक्षर एक - से हैं , उनके सुख - दु : ख आदि भोग क्या एक समान होते हैं ? कदापि नहीं , कदापि नहीं ।
साभार -✍🏻 पंo मनसाराम वैदिक तोप

Tuesday, 23 October 2018

हकीकत में आरक्षण कौन खा रहा है ❓❓



कल मध्यरात्रि को आर ए एस प्री का परिणाम जारी हुआ था आप सब ने देखा होगा की कट ऑफ जनरल से ओबीसी की अधिक रही इसका साफ-साफ अर्थ है कि ओबीसी के अभ्यर्थियों को ओबीसी के कोटे के अंदर ही बांध के रखा है उन्हें जनरल में नहीं जाने दिया गया है अब कम नंबर लाकर भी जनरल वाले अफसर बनेंगे और ओबीसी वाले ज्यादा नंबर लाकर भी धक्के खाते रहेंगे फिर यह काहे का आरक्षण है❓❓

एक नजर कल के RAS प्री के परिणाम परNo automatic alt text available.
अब इसे क्या कहेंगे? अन्य पिछड़ा वर्ग के युवा पढ़ने में भयंकर होशियार हैं कि वे सामान्य से 23.27% अंक अधिक अर्जित कर उनको मात दे रहे हैं ? असल में पढ़ाई में OBC के युवा अब आगे तो हैं मगर उनके साथ फिर से अन्याय शुरू हो चुका है क्योंकि नियमानुसार 99.33 % से नीचे की तरफ 76.06% तक उनके जितने भी युवा हैं वे प्रतिभाशाली हैं यानी मेरिट जहाँ रुकती है उससे भी ऊपर हैं तो पहले इन्हें मेरिट से लिया जाये फिर 76.06% सामान्य के स्तर तक वालों को 21% राज्य कोटा और 27% केन्द्रीय कोटा जैसी भी परीक्षा है, के अनुसार मिले तो ही तो आरक्षण है अन्यथा कैसा आरक्षण है ? 4-5 खास ही जातियों को 51% आरक्षण और SC,ST तथा OBC की करीब 9000 जातियों को मात्र 49% आरक्षण ये बन गया है न्यायिक निर्णयों के माध्यम से अब समस्त आरक्षित वर्ग को संघर्ष करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए क्योंकि कुटिलतापूर्ण तरीके से ये षडयंत्र चल रहा है कि यातो आरक्षण खत्म हो या जो अब चल रहा कि जो जहाँ है वहीं रहे फिर आप मेरिट किसे कहेंगे? आप क्या सोचते हैं? थोड़ा अवगत कराएं :-

 और दूसरी जातियां कहती है कि ओबीसी का आरक्षण जाट खा रहे हैं हम उनसे यह कहना चाहते हैं कि अब आप ही देख लीजिए कि आप का आरक्षण कौन खा रहे हैं  सरकार खा रही है या जनरल खा रहा है कौन खा रहा है आरक्षण की असलियत भी आज तक लोगों ने समझने की कोशिश नहीं की 2017 में सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आया था उसमें स्पष्ट कहा गया है कि ओबीसी एससी एसटी के लोगों को जनरल की सीटों पर नौकरी नहीं मिलेगी अब दूसरी जातियां यह तय करें कि आपका आरक्षण कौन खा रहा है अगर ओबीसी का आरक्षण केवल जाट खा रहे हैं तो जनरल की कट ऑफ ओबीसी से नीचे क्यों 24 % का अंतर क्यों सभी से यही निवेदन है कि इसको समझने की कोशिश करें कि जो आरक्षित है जैसे ओबीसी एससी एसटी उनको उनके ही आरक्षित दायरे में बांधने की कोशिश की गई है यानी ओबीसी एससी एसटी का कोई भी व्यक्ति चाहे कितने भी नंबर लाए उनको जनरल में शामिल नहीं किया जाएगा उनको अपनी ही कैटेगरी में रखा जाएगा इसलिए सबका हित इसी में है कि एकजुट होकर सरकारों को मुंहतोड़ जवाब दीजिए आप बोलते नहीं हैं और जो बोलते हैं वह जनरल वाले लंबे समय से आरक्षण का विरोध करते आ रहे हैं तो देखो फायदा भी वही उठा रहे हैं आरक्षण के नाम का लॉलीपॉप sc.st.obc को पकड़ा दिया गया है और फायदा जनरल वाले उठा रहे हैं अगर आप ऐसे तो मानते नहीं है क्योंकि हमारी आदत है कि हम सच को स्वीकार नहीं करते सीधा सीधा, लेकिन अब तो मान लीजिए 26 नंबर का अंतर है जनरल और ओबीसी का अब दुबारा यह मत कहना की ओबीसी का आरक्षण जाट खा रहे हैं ओबीसी की अन्य जातियों से हमारा यह निवेदन है कि आप खुद पता कीजिए कि असल में आरक्षण कौन खा रहा है आपको समझ में आ जाएगा कि यह आरक्षण जनरल वालों को ही दिया जा रहा है आप उन्हें समझने की कोशिश कीजिए कि sc.st.obc जनसंख्या में 85% है और जनरल सिर्फ 15% है इससे हम 85 अनुपात 15 माने

 आप मान लीजिए जैसे100 आदमी है उनमें 100 रुपयों का बंटवारा करना है उनमें ₹100 की धनराशि का बंटवारा करना है तो आरक्षण के अनुसार ऐसे होगा की 85 लोगों को ₹49 मिलेंगे और सिर्फ 15 लोगों को ₹51 मिलेंगे अब तय आपको करना है कि ज्यादा फायदा 15 लोगों को हो रहा है या 85 लोगों को हो रहा है जो यह उदाहरण मैंने दिया है यह परफेक्ट उदाहरण है इस आरक्षण को समझने के लिए क्योंकि यहां सिर्फ 15% लोगों को 51% आरक्षण मिल रहा है क्योंकि एससी एसटी ओबीसी को उन्हीं की कैटेगरी में बांध दिया गया है


 आप मान लीजिए कि आपके सामने 4 कटोरी रखी गई है और उन में अलग-अलग मात्रा में दूध डाला गया है अब आप समझ लीजिए कि यहां SC ST ओबीसी के कटोरे में 49  लीटर दूध है और 49 लीटर में भी 3 कटोरिया में बांटा गया है बाकी का 51 लीटर एक कटोरी में है अब 49 लीटर दूध में SC ST, OBC के 85 प्रतिशत लोगों में बांटा जाएगा और 51 लीटर दूध सिर्फ 15 लोगो 15%  सामान्य वर्ग को मिलेगा अब आप यह समझ लीजिए कि ज्यादा फायदा किन को हो रहा है सामान्य वर्ग हो रहा है या आरक्षित वर्गों को हो रहा है असल में 15 लोगों को 100 लीटर में से 51 लीटर दूध मिलता है


 तो आप समझिए की असली फायदा किसको को यानी आरक्षण जनरल वालों को ही है एससी एसटी ओबीसी को तो आरक्षण के नाम पर लॉलीपॉप दिया गया है और हम इस बात को समझने की कभी कोशिश ही नहीं करते

 हम खुद जनरल वालों के बहकावे में आकर कहते हैं कि आरक्षण हटना चाहिए यानी हमें यह भी समझ में नहीं आया आज तक आरक्षण किन को मिला है कम से कम इतनी तो अकल लगाइए तो समझिए आरक्षण का  क्या है

Sunday, 21 October 2018

गाटे चलता गया गोधङा,ऊँठों
रा खला खेत गया।
खलां माथे खाता गूगरी वै मिनखाँ रा हैत गया।।


चित्र में ये शामिल हो सकता है: बाहर और प्रकृति

Wednesday, 10 October 2018

शहीद होने के बाद, परिवार की हकीकत -

शहीद होने के बाद, परिवार की हकीकत -

एक नजरजब एक सैनिक के शहीद होने के पश्चात जब उसका भौतिक शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ पैतृक घर आता है तब परिवार पर गुजरने वाली स्थिति से हम वाकिफ हैं।
अंतिम संस्कार के वक्त प्रशासनिक रश्मो के अलावा स्थानीय नेता औपचारिकता पूरी करते है- सामाजिक व राजनीतिक जरूरतों के मुताबिक तथा कुछ सामान्य जाने माने शब्दों का उदगार जैसे की - वीर पर्सूता भूमि, वीर नारी, शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाता, शहीद परिवार की हर संभव सहायता की जायेगी इत्यादि इत्यादि।
मिडिया प्रतिनिधि अखबारों में छापेंगे - शहीदों का गांव, शहीद के माता पिता ने कहा हम अपने दूसरे बेटे को भी सेना में भेजेंगे, विधवा पत्नि ने कहा मैं अपने बच्चों को बडा़ होने पर सेना में भेजूंगी वगैरह वगैरह।

राम,रामायण,रामलीला - गांवों की तरफ

Suman Krishnia

राम,रामायण,रामलीला - गांवों की तरफ
1960 के दशक में एक project शुरू किया गया था,जिसके तहत रामलीला मंचन का रूख गांव व कस्बों की तरफ किया गया था,उससे पहले राम लीला मंचन कुछ मुख्य शहरों तक ही सीमित था। इस प्रोजेक्ट को गांव कस्बों की तरफ ले जाने के पीछे तर्क था- गांवों व कस्बों में राष्ट्भक्ति व एकता की भावना जाग्रत करना ( यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पहले, दूसरे विश्वयुद्ध में ज्यादातर सैनिक गांव कस्बों से थे, तथा आजाद हिंद फौज के सैनिक भी उन्हीं मे से थे, तो यह तो बहुत सामान्य बात थी की ग्रामीण भी देश,आजादी व राष्टृयिता से वाकिफ रहे होंगे ) ।
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इस प्रोजेक्ट के प्रेणेता थे, डाँ राम मनोहर लोहिया। इसके संदर्भ आपको मिलेंगे उनके राजनितिक सचिव ,श्री भटनागर द्वारा लिखित बायोग्राफी में

मृत्युभोज व हरिद्वार : व्यक्तिगत अनुभव

Suman Krishnia

मृत्युभोज व हरिद्वार : व्यक्तिगत अनुभव

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पीहर में पिताजी ने मृत्युभोज 1982-83 (34 साल पहले) मे जब दादाजी गुजरे तब बंद कर दिया था, उस वक्त पिताजी की उम्र थी 48 वर्ष के करीब, यह उनका स्वयं का निर्णय था जो शायद उन्होंने मन में बहुत पहले ही ले रखा था, दादाजी के देहावसान पर क्रियांवित किया। परिवार के सदस्य भी सहमत। उसके बाद धीरे धीरे बाकि लोग भी बंद करते गए।
ससुराल में दादा ससुर ने 1971 ( 47 साल पहले ) में अपनी मां के देहावसान के समय मृत्युभोज बंद करने का निर्णय लिया, उस वक्त दादा ससुर की उम्र 70 वर्ष के करीब थी, परिवार ने सहमति दी - उसके बाद धीरे धीरे आस पडो़स, गांव के लोगों ने भी बंद कर दिया। यह दादा ससुर का व्यक्तिगत निर्णय था, जिसमें परिवार नें सहयोग दिया।
इन दोनों ही स्थितियों में घर के बड़ो ने अपने घर से शुरूआत की व समाज के सामने एक उदाहरण पेश किया- बाकि लोग भी देर सवेर उसी राह पर चल पडे।

Monday, 8 October 2018

विदेशियों द्वारा की गई मानवोपयोगी खोज और भारत के अतिप्रतिभाशाली भारतीयों की खोज...

विदेशियों द्वारा की गई मानवोपयोगी खोज और भारत के अतिप्रतिभाशाली भारतीयों की खोज

विदेशियों की खोज :-

1. मोबाईल फोन
2. Facebook (फेसबुक)
3. WhatsApp (ह्वाटसएप)
4. Email (ई मेल)
5. Fan (पंखा)
6. जहाज
7. रेलगाड़ी
8. रेडियो
9. टेलीविजन
10. कम्प्यूटर
11. चीप (Memory Card)
12. कागज
13. प्रिंटर
14. वाशिंग मशीन
15. AC (एयर कंडीशनर)

Wednesday, 1 August 2018

चे ग्वेरा: एक ज़ुनूनी क्रांतिकारी

चे ग्वेरा: एक ज़ुनूनी क्रांतिकारी
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जन्म: 14 जून 1928
वीरगति: 9 अक्टूबर 1967 ( उम्र 39 वर्ष )
असल नाम अर्नेस्तो "चे" ग्वेरा था. जन्म अर्जेंटीना के रोसारियो नामक स्थान पर हुआ था. पिता थे अर्नेस्टो ग्वेरा लिंच. मां का नाम था—सीलिया दे ला सेरना ये लोसा. बचपन में ही दमा रोग से ग्रसित होने की वज़ह से इस बालक के लिए नियमित रूप से स्कूल जाना संभव नहीं था. घर पर उसकी मां ने उसे प्रारंभिक शिक्षा दी. पिता ने उसको सिखाया कि किस प्रकार दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर शारीरिक दुर्बलता पर विजय पाना संभव है और यह भी कि इरादे मजबूत हों तो कैसे बड़े संकल्प आसानी से साधे जा सकते हैं.Image may contain: 1 person, text

कश्मीर-कलह पर भ्रांति निवारण

कश्मीर-कलह पर भ्रांति निवारण
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इस वक्त सोशल मीडिया पर जम्मू-कश्मीर को लेकर तथ्यविहीन बातों का अंधड़ सा चल रहा है! खासकर वहां की राजनीति, समाज, उसके भारत में सम्मिलन, संविधान के अनुच्छेद 370 और अलगाववाद के पैदा होने की वजह आदि जैसे विषयों पर! अज्ञानता के इस अंधड़ में कुछ अच्छे खासे शिक्षित लोगों को भी भ्रमित होकर भटकते देखा जा रहा है। हिंदी के ज्यादातर चैनल अज्ञानता के अंधड़ को और बढ़ा रहे हैं! उनके ज्यादातर एंकरों और वरिष्ठ पत्रकारों का कश्मीर-ज्ञान 'गूगल' या हिंदी अखबारों तक सीमित है। 
ऐसे में मेरा एक सुझाव है। इसे मित्र-गण अन्यथा नहीं लें! आपमें से ज्यादातर बहुत अच्छे प्रोफेशनल हैं! 
शिक्षक, पत्रकार, प्रोफेशनल्स और अन्य सभी शिक्षित मित्र-गण थोड़ा कष्ट करें। वैसे तो कश्मीर पर बहुत सारी किताबें बाजार में हैं। पर हिंदी में गिनी चुनी ही हैं। यहां अंग्रेजी और हिंदी की कुछेक किताबों की सूची दे रहा हूं, इनमें से किसी भी किताब को मंगाकर जरुर पढ़ें! इससे कश्मीर पर कम से कम तथ्यों की प्रमाणिक जानकारी मिल सकेगी। अज्ञानता और अफवाहों के अंधड़ से बचा जा सकेगा। सभी किताबें घर बैठे Amazon आदि से मंगाई जा सकती हैं।